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अथर्ववेद का सामान्य परिचय :—

सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा इसका ज्ञान अङ्गिरा ॠषि को दिया गया था।

अथर्ववेद धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की साधनों की कुन्जी है। जीवन एक सतत संग्राम है। अथर्ववेद जीवन-संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है।

अथर्ववेद युद्ध और शान्ति का वेद है। शरीर में शान्ति किस प्रकार रहे, उसके लिए नाना प्रकार की औषधियों का वर्णन इसमें है। परिवार में शान्ति किस प्रकार रह सकती है, उसके लिए भी दिव्य नुस्खे इसमें हैं। राष्ट्र और विश्व में शान्ति किस प्रकार रह सकती है, उन उपायों का वर्णन भी इसमें है।

यदि कोई देश शान्ति को भंग करना चाहे तो उससे किस प्रकार युद्ध करना, शत्रु के आक्रमणों से अपने को किस प्रकार बचाना और उनके कुचक्रों को किस प्रकार समाप्त करना, इत्यादि सभी बातों का विशद् वर्णन अथर्ववेद में है।

अथर्ववेद का अर्थ--अथर्वों का वेद, वेदों में अन्यतम अथर्ववेद एक महती विशिष्टता से युक्त है । अथर्ववेद का अर्थ---अथर्वों का वेद (ज्ञान), और अङ्गिरों का ज्ञान अर्थात् अभिचार मन्त्रों से सम्बन्धित ज्ञान ।

१. अथर्वन्--- स्थिरता से युक्त योग । निरुक्त (११.१८) के अनुसार "थर्व" धातु से यह शब्द बना है, जिसका अर्थ है---गति या चेष्टा । अतः "अथर्वन्" शब्द का अर्थ है--स्थिरता । इसका अभिप्राय है कि जिस वेद में स्थिरता या चित्तवृत्तियों के निरोधरूपी योग का उपदेश है, वह अथर्वन् वेद है---"अथर्वाणोऽथर्वणवन्तः । थर्वतिश्चरतिकर्मा, तत्प्रतिषेधः।" निरुक्त (११.१८)

२. गोपथ-ब्राह्मण के अनुसार---समीपस्थ आत्मा को अपने अन्दर देखना या वेद वह जिसमें आत्मा को अपने अन्दर देखने की विद्या का उपदेश हो ।

प्राचीन काल में अथर्वन् शब्द पुरोहितों का द्योतक था । 

 

अथर्ववेद के अन्य नाम —

अथर्वाङ्गिरस्, 

अङ्गिरसवेद, 

ब्रह्मवेद, 

भृग्वाङ्गिरोवेद, 

क्षत्रवेद, 

भैषज्य वेद, 

छन्दो वेद, 

महीवेद

 

मुख्य ऋषि---अङ्गिरा,

ऋत्विक्---ब्रह्मा

 

शाखाएँ —

 

ऋषि पतञ्जलि ने महाभाष्य में इस वेद की ९ शाखाएँ बताईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार है।

(१.) पैप्लाद,

(२.) तौद, (स्तौद)

(३.) मौद,

(४.) शौनकीय,

(५.) जाजल,

(६.) जलद,

(७.) ब्रह्मवद,

(८.) देवदर्श,

(९.) चारणवैद्य ।

 

इनमें से सम्प्रति केवल २ शाखाएँ ही उपलब्ध हैः--शौनकीय और पैप्लाद । शेष मुस्लिम आक्रान्ताओं ने नष्ट कर दी । आजकल सम्पूर्ण भारत वर्ष में शौनकीय-शाखा ही प्रचलित है और यही अथर्ववेद है ।

 

१. शौनकीय-शाखा —

 

काण्ड---२०,

सूक्त---७३०,

मन्त्र---५९७७,

 

(२.) पैप्लाद -शाखा

यह अपूर्ण है । इसका प्रचलन पतञ्जलि के समय था ।

 

उपवेद - अर्थर्वेद

 

गोपथ-ब्राह्मण (१.१.१०) में इसके पाँच उपवेदों का वर्णन हुआ है---

सर्पवेद, 

पिशाचवेद, 

असुरवेद, 

इतिहासवेद, 

पुराणवेद ।

शतपथ-ब्राह्मण (१३.४.३.९) में भी इन उपवेदों का नाम आया है---

सर्पविद्यावेद, 

देवजनविद्यावेद, (रक्षोवेद या राक्षसवेद), 

मायावेद (असुरवेद या जादुविद्यावेद), 

इतिहासवेद, 

पुराणवेद

 

ब्राह्मण —  गोपथ-ब्राह्मण

आरण्यक —  कोई नहीं

उपनिषद् — मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद्

श्रौतसूत्र — वैतान

गृह्यसूत्र — कौशिक,

धर्मसूत्र — कोई नहीं ।

शुल्वसूत्र — कोई नहीं ।

 

अथर्ववेद के सूक्त —

 

(१.) पृथिवी-सूक्त, अन्य नाम---भूमि-सूक्त (१२.१) कुल ६३ मन्त्र ।

(२.) ब्रह्मचर्य-सूक्त — (११.५) कुल २६ मन्त्र ।

(३.) काल-सूक्त — दो सूक्त हैं---११.५३ और ११.५४, कुल मन्त्र १५ 

(४.) विवाह-सूक्त — पूरा १४ वाँ काण्ड । इसमें २ सूक्त और १३९ मन्त्र हैं ।

(५.) व्रात्य-सूक्त--- १५ काण्ड के १ से १८ तक के सूक्तों में २३० मन्त्र है, ये सभी व्रात्य सूक्त हैं ।

(६.) मधुविद्या-सूक्त---९ वें काण्ड के सूक्त १ के २४ मन्त्रों में यह सूक्त है ।

(७.) ब्रह्मविद्या-सूक्त---अथर्ववेद के अनेक सूक्तों में ब्रह्मविद्या का विस्तृत वर्णन है ।

 

अथर्ववेद एक प्रकार का विश्वकोश है । यह सार्वजनीन वेद है । इसमें सभी वर्णों और सभी आश्रमों का विस्तृत वर्णन है ।