Samveda/437
विश्वतोदावन्विश्वतो न आ भर यं त्वा शविष्ठमीमहे॥४३७
Veda : Samveda | Mantra No : 437
In English:
Seer : trasadasyuH | Devta : indraH | Metre : dvipadaa viraaT | Tone : pa~nchamaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : vishvatodaavanvishvato na aa bhara ya.m tvaa shaviShThamiimahe.437
Component Words : vishvatodaavan. vishvataH. daavan. vishvataH. naH.aa.bhara.yam.tvaa . shaviShTham.iimahe. .
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : त्रसदस्युः | देवता : इन्द्रः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः
विषय : प्रथम मन्त्र में इन्द्र से धनादि की याचना की गयी है।
पदपाठ : विश्वतोदावन्। विश्वतः। दावन्। विश्वतः। नः।आ।भर।यम्।त्वा । शविष्ठम्।ईमहे। १ ।
पदार्थ : हे (विश्वतोदावन्) सब ओर दान करनेवाले परमात्मन् वा राजन् ! आप (विश्वतः) सब ओर से (नः) हमारे लिए (आ भर) विद्या, धन, बल आदि लाइए, (यम्) जिन (शविष्ठम्) बलिष्ठ (त्वा) आपसे, हम (ईमहे) याचना कर रहे हैं ॥१॥इस मन्त्र में अर्थ-श्लेष अलङ्कार, तथा ‘विश्वतो’ की आवृत्ति में लाटानुप्रास अलङ्कार है ॥१॥
भावार्थ : जैसे परमेश्वर हमारे लिए वेदज्ञान, आत्मबल, देहबल तथा सूर्य, वायु, पृथिवी, सुवर्ण आदि धन देता है, वैसे ही राजा भी राष्ट्र में निरक्षरों को विद्या, निर्बलों को बल और निर्धनों को धन प्रदान करे ॥१॥
टिप्पणी :अगले मन्त्र में इन्द्र परमात्मा का वर्णन किया गया है।
In Sanskrit:
ऋषि : त्रसदस्युः | देवता : इन्द्रः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः
विषय : तत्राद्ये मन्त्रे इन्द्रो धनादिकं याच्यते।
पदपाठ : विश्वतोदावन्। विश्वतः। दावन्। विश्वतः। नः।आ।भर।यम्।त्वा । शविष्ठम्।ईमहे। १ ।
पदार्थ : हे (विश्वतोदावन्) सर्वतो दानकर्तः इन्द्र परमात्मन् राजन् वा ! विश्वतस्पूर्वाद् ददातेः ‘आतो मनिन्क्वनिब्वनिपश्च। अ० ३।२।७४’ इति वनिप् प्रत्ययः। त्वम् (विश्वतः) सर्वतः (नः) अस्मभ्यम्, (आ भर) विद्याधनबलादिकम् आहर, (यम् शविष्ठम्) बलिष्ठम् (त्वा) त्वाम्, वयम् (ईमहे) याचामहे। ईमहे इति याच्ञाकर्मसु पठितम्। निघं० ३।१९ ॥१॥अत्र अर्थश्लेषः, ‘विश्वतो’ इत्यस्यावृत्तौ च लाटानुप्रासोऽलङ्कारः ॥१॥
भावार्थ : यथा परमेश्वरोऽस्मभ्यं वेदज्ञानम् आत्मबलं देहबलं सूर्यवायुपृथिवीहिरण्यादिकं धनं च प्रयच्छति तथैव नृपतिरपि राष्ट्रे निरक्षरेभ्यो विद्यां निर्बलेभ्यो बलं निर्धनेभ्यश्च धनं प्रदद्यात् ॥१॥
टिप्पणी:अथेन्द्रं परमात्मानं वर्णयति।