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Samveda/477

प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोना म् । सुता विदथे अक्र मुः॥४७७

Veda : Samveda | Mantra No : 477

In English:

Seer : shyaavaashvaH aatreyaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pra somaaso madachyutaH shravase no maghonaH . sutaa vidathe akramuH.477

Component Words :
pra. somaasaH. madachyutaH.mada.chyutaH. shravase . naH. maghonaam. sutaaH. vidathe. akramuH ..

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : श्यावाश्वः आत्रेयः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम मन्त्र में दिव्य आनन्दरसों का वर्णन है।

पदपाठ : प्र। सोमासः। मदच्युतः।मद।च्युतः। श्रवसे । नः। मघोनाम्। सुताः। विदथे। अक्रमुः ।१।

पदार्थ : (सुताः) रसागार परमात्मा से अभिषुत, (मदच्युतः) उत्साहवर्षी (सोमासः) दिव्य आनन्द-रस (मघोनाम्) हम ऐश्वर्यवानों के (श्रवसे) यश के लिए (विदथे) हमारे जीवन-यज्ञ में (प्र अक्रमुः) व्याप्त हो रहे हैं ॥१॥

भावार्थ : परमात्मा के साथ योग से जो दिव्य आनन्दरस प्राप्त होता है वह मानव के सम्पूर्ण जीवन-यज्ञ में व्याप्त होकर उसे यशस्वी बनाता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : श्यावाश्वः आत्रेयः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ दिव्यानन्दरसान् वर्णयति।

पदपाठ : प्र। सोमासः। मदच्युतः।मद।च्युतः। श्रवसे । नः। मघोनाम्। सुताः। विदथे। अक्रमुः ।१।

पदार्थ : (सुताः) रसागारात् परमात्मनः अभिषुताः (मदच्युतः) उत्साहवर्षिणः (सोमासः) दिव्यानन्दरसाः (मघोनाम्) ऐश्वर्यवताम् (नः) अस्माकम् (श्रवसे) यशसे (विदथे) अस्माकं जीवनयज्ञे। विदथ इति यज्ञनाम। निघं० ३।१७। (प्र अक्रमुः) प्रकर्षेण पदं निदधति ॥१॥

भावार्थ : परमात्मना सह योगेन यो दिव्यानन्दरसः प्राप्यते स मानवस्य समग्रं जीवनयज्ञमभिव्याप्तं तं यशस्विनं करोति ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।३२।१, ‘मघोनाम्’ इत्यत्र ‘मघोनः’ इति पाठः। साम० ७६९।