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Samveda/489

आविशन्कलश सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। इन्दुरिन्द्राय धीयते॥४८९

Veda : Samveda | Mantra No : 489

In English:

Seer : jamadagnirbhaargavaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : aavishankalasha.m suto vishvaa arShannabhi shriyaH . indurindraaya dhiiyate.489

Component Words :
aavishan.aa.vishan. kalasham. sutaH. vishvaaH. arShan.abhi . shriyaH. induH. indraaya. dhiiyate..

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि परमात्मा सब शोभाओं को प्रदान करता है।

पदपाठ : आविशन्।आ।विशन्। कलशम्। सुतः। विश्वाः। अर्षन्।अभि । श्रियः। इन्दुः। इन्द्राय। धीयते।३।

पदार्थ : (सुतः) अभिषुत किया हुआ अर्थात् ध्यान द्वारा प्रकट किया हुआ, (कलशम्) हृदय-रूप द्रोणकलश में (आविशन्) प्रवेश करता हुआ, (विश्वाः) समस्त (श्रियः) शोभाओं को अथवा सद्गुणरूप ऐश्वर्यों को (अर्षन्) प्राप्त कराता हुआ (इन्दुः) चन्द्रमा के समान सौम्य कान्तिवाला और सोम ओषधि के समान रस से परिपूर्ण परमेश्वर (इन्द्राय) जीवात्मा की उन्नति के लिए (धीयते) संमुख स्थापित किया जाता है ॥३॥

भावार्थ : परमात्मा में ध्यान लगाने से जीवात्मा सब प्रकार का उत्कर्ष प्राप्त कर सकता है ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : स सोमः परमात्मा विश्वाः श्रियः प्रयच्छतीत्याह।

पदपाठ : आविशन्।आ।विशन्। कलशम्। सुतः। विश्वाः। अर्षन्।अभि । श्रियः। इन्दुः। इन्द्राय। धीयते।३।

पदार्थ : (सुतः) अभिषुतः, ध्यानद्वारा प्रकटितः, (कलशम्) हृदयरूपं द्रोणकलशम् (आविशन्) प्रविशन्, (विश्वाः) समस्ताः (श्रियः) शोभाः सद्गुणैश्वर्याणि वा (अर्षन्) आर्षयन् प्रापयन्। ऋषी गतौ, तुदादिः। लुप्तणिच्कः प्रयोगः। (इन्दुः) चन्द्रवत् सौम्यकान्तिः सोमौषधिवद् रसपूर्णः परमेश्वरः (इन्द्राय) जीवात्मने तदुन्नतये इत्यर्थः (धीयते) पुरतः स्थाप्यते ॥३॥

भावार्थ : परमात्मनि ध्यानेन जीवात्मा सर्वविधमुत्कर्षं प्राप्तुं शक्नोति ॥३॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६२।१९, ‘शूरो न गोषु तिष्ठति’ इति तृतीयः पादः।