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Samveda/609

प्रक्षस्य वृष्णो अरुषस्य नू महः प्र नो वचो विदथा जातवेदसे। वैश्वानराय मतिर्नव्यसे शुचिः सोम इव पवते चारुरग्नये॥६०९

Veda : Samveda | Mantra No : 609

In English:

Seer : bharadvaajo baarhaspatyaH | Devta : agniH | Metre : jagatii | Tone : niShaadaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : prakShasya vRRiShNo aruShasya nuu mahaH pra no vacho vidathaa jaatavedase . vaishvaanaraaya matirnavyase shuchiH soma iva pavate chaaruragnaye.609

Component Words :
prakShasya.pra.kShasya. vRRiShNaH. aruShasya. nu.mahaH. pra. naH. vachaH. vidathaa. jaatavedase.jaata.vedase. vaishvaanaraaya.vaishva.naraaya. matiH.navyase. shuchiH. somaH. iva .pavate. chaaruH.agnaye..

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : भरद्वाजो बार्हस्पत्यः | देवता : अग्निः | छन्द : जगती | स्वर : निषादः

विषय : देवता वैश्वानर अग्नि है। परमेश्वर के प्रति स्तुतिवचनों को प्रवृत्त करने का वर्णन है।

पदपाठ : प्रक्षस्य।प्र।क्षस्य। वृष्णः। अरुषस्य। नु।महः। प्र। नः। वचः। विदथा। जातवेदसे।जात।वेदसे। वैश्वानराय।वैश्व।नराय। मतिः।नव्यसे। शुचिः। सोमः। इव ।पवते। चारुः।अग्नये।८।

पदार्थ : (प्रक्षस्य) सब पदार्थों से संपृक्त अर्थात् सर्वव्यापक, (वृष्णः) सुख आदि की वर्षा करनेवाले, (अरुषस्य) दीप्तिमान् परमात्मा का (नु) निश्चय ही (महः) अत्यन्त महत्त्व व पूज्यत्व है। (विदथा) ज्ञानयज्ञ में (जातवेदसे) सब उत्पन्न पदार्थों के ज्ञाता वैश्नानर परमात्मा के लिए (नः वचः) हमारा स्तुति-वचन (प्र) भली-भाँति प्रवृत्त होता है और (नव्यसे) अतिशय नवीन (वैश्वानराय) सब जनों का हित करनेवाले (अग्नये) उस अग्रनायक परमात्मा के लिए, हमारी (शुचिः) पवित्र (चारुः) रमणीय (मतिः) बुद्धि, विचारधारा (पवते) प्रवृत्त हो रही है, (इव) जैसे (शुचिः) पवित्र (चारुः) मनोहर (सोमः) सोम ओषधि का रस (पवते) द्रोणकलश में जाने के लिए प्रवाहित होता है, अथवा जैसे (शुचिः) चमकीला, (चारुः) आह्लादकारी (सोमः) चन्द्रमा (वैश्वानराय) सूर्य की परिक्रमा करने के लिए (पवते) अन्तरिक्ष में गति करता है ॥८॥इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥८॥

भावार्थ : सर्वान्तर्यामी, सुखवर्षक, तेजस्वी, सर्वज्ञ, सब जनों के हितकर्ता, मार्गदर्शक परमेश्वर के प्रति उत्तम स्तोत्र सबको प्रवृत्त करने चाहिएँ ॥८॥


In Sanskrit:

ऋषि : भरद्वाजो बार्हस्पत्यः | देवता : अग्निः | छन्द : जगती | स्वर : निषादः

विषय : अथ वैश्वानरोऽग्निर्देवता। परमेश्वरं प्रति स्तुतिवचांसि गच्छन्तीत्याह।

पदपाठ : प्रक्षस्य।प्र।क्षस्य। वृष्णः। अरुषस्य। नु।महः। प्र। नः। वचः। विदथा। जातवेदसे।जात।वेदसे। वैश्वानराय।वैश्व।नराय। मतिः।नव्यसे। शुचिः। सोमः। इव ।पवते। चारुः।अग्नये।८।

पदार्थ : (प्रक्षस्य) सर्वैः पदार्थैः संपृक्तस्य, सर्वव्यापकस्य। पृची सम्पर्के, बाहुलकाद् औणादिकः सः प्रत्ययः। (वृष्णः) सुखादिवर्षकस्य, (अरुषस्य) आरोचमानस्य वैश्वानरस्य परमात्मनः। अरुषीः आरोचनात् इति निरुक्तम्। १२।७। (नु) निश्चयेन (महः) अतीव महत्त्वं पूज्यत्वं वा वर्तते। महि वृद्धौ, मह पूजायाम्। (विदथा) विदथे ज्ञानयज्ञे। अत्र ‘सुपां सुलुक्०। अ० ७।१।३९’ इति सप्तम्या आकारादेशः। (जातवेदसे) सर्वेषाम् उत्पन्नपदार्थानां ज्ञात्रे तस्मै वैश्वानराय परमात्मने (नः वचः) अस्माकं स्तुतिवचनम् (प्र) प्रपवते प्रकर्षेण गच्छति। किञ्च (नव्यसे) नवीयसे (वैश्वानराय) सर्वजनहितकराय तस्मै (अग्नये) अग्रनायकाय परमात्मने, अस्माकम् (शुचिः) पवित्रा, (चारुः) रम्या (मतिः) बुद्धिः, विचारसरणिः (पवते) प्रवृत्ता भवति। कथमिव ? (इव) यथा (शुचिः) पवित्रः (चारुः) मनोज्ञः (सोमः) सोमौषधिरसः (पवते) द्रोणकलशं गन्तुं प्रवाहितो भवति, यद्वा, यथा (शुचिः) प्रदीप्तः (चारुः) आह्लादकः (सोमः) चन्द्रः (वैश्वानराय) सूर्याय, सूर्यं परितः इत्यर्थः (पवते) अन्तरिक्षे गच्छति ॥८॥२अत्रोपमालङ्कारः ॥८॥

भावार्थ : सर्वान्तर्यामिणं सुखवर्षकं तेजस्विनं सर्वज्ञं सर्वजनहितकारिणं मार्गदर्शकं परमेश्वरं प्रति सुस्तोत्राणि सर्वैः प्रवर्तनीयानि ॥८॥

टिप्पणी:१. ऋ० ६।८।१, ‘प्रक्षस्य’, ‘महः प्र नो वचो’, ‘जातवेदसे’, ‘नव्यसे’ इत्यत्र क्रमेण ‘पृक्षस्य’, ‘सहः प्र नु वोचं’, ‘जातवेदसः’, ‘नव्यसी’ इति पाठः।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमेतम् अग्निविद्यापक्षे व्याख्यातवान्।