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Samveda/734

इदं वसो सुतमन्धः पिबा सुपूर्णमुदरम्। अनाभयिन्ररिमा ते॥७३४

Veda : Samveda | Mantra No : 734

In English:

Seer : vasiShTho maitraavaruNiH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : idam vaso sutamandhaH pibaa supuurNamudaram . anaabhayinrarimaa te.734

Component Words :
idam .vaso .sutam .andhaH .piba .supuurNam .su .puurNam .udaram .u .daram .anaabhayin .an .aabhayin .rarim .te .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : वसिष्ठो मैत्रावरुणिः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क १२४ पर परमात्मा और अतिथि के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ गुरुजन शिष्य को ब्रह्मानन्द-रस का पान करा रहे हैं।

पदपाठ : इदम् ।वसो ।सुतम् ।अन्धः ।पिब ।सुपूर्णम् ।सु ।पूर्णम् ।उदरम् ।उ ।दरम् ।अनाभयिन् ।अन् ।आभयिन् ।ररिम् ।ते ॥

पदार्थ : हे (वसो) गुरुकुलनिवासी, व्रतपालक ब्रह्मचारी ! (इदम् अन्धः) यह ब्रह्मविज्ञान, तेरे लिए (सुतम्) अभिषुत है, तू इसे (सुपूर्णम् उदरम्) पेट भरकर (पिब) पान कर। हे (अनाभयिन्) निर्भय शिष्य ! हम (ते) तेरे लिए, यह विज्ञान (ररिम) दे रहे हैं ॥१॥

भावार्थ : जिन्होंने ब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया है, ऐसे गुरुजनों को उचित है कि वे छात्रों को ब्रह्मज्ञान देकर अनुगृहीत करें ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : वसिष्ठो मैत्रावरुणिः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १२४ क्रमाङ्गे परमात्मविषयेऽतिथिविषये च व्याख्याता। अत्र गुरवः शिष्यं ब्रह्मज्ञानरसं पाययन्ति।

पदपाठ : इदम् ।वसो ।सुतम् ।अन्धः ।पिब ।सुपूर्णम् ।सु ।पूर्णम् ।उदरम् ।उ ।दरम् ।अनाभयिन् ।अन् ।आभयिन् ।ररिम् ।ते ॥

पदार्थ : हे (वसो) गुरुकुले कृतनिवास व्रतपालक ब्रह्मचारिन् ! (इदम् अन्धः) एतद् ब्रह्मविज्ञानम् तुभ्यम् (सुतम्) अभिषुतमस्ति, त्वम् एतत् (सुपूर्णम् उदरम्) कणेहत्य (पिब) आस्वादय। हे (अनाभयिन्) निर्भय शिष्य ! वयम् (ते) तुभ्यम्, एतद् विज्ञानम् (ररिम) प्रयच्छामः ॥१॥

भावार्थ : कृतब्रह्मसाक्षात्कारैर्गुरुभिश्छात्रा ब्रह्मज्ञानदानेनानुग्राह्याः ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।२।१, साम० १२४।