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Samveda/799

इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्यरोहयद्दिवि। वि गोभिरद्रिमैरयत् (खा)।।॥७९९

Veda : Samveda | Mantra No : 799

In English:

Seer : madhuchChandaa vaishvaamitraH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : indro diirdhaaya chakShasa aa suurya.m rohayaddivi . vi gobhiradrimairayat.799

Component Words :
indra .diirghaayu .chakShase .aa .suuryam .rohayat. divi .vi .gobhiH .adrim. a .drima .airayat.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में जीवात्मा के भी अधिष्ठाता जगदीश्वर की महिमा का वर्णन है।

पदपाठ : इन्द्र ।दीर्घायु ।चक्षसे ।आ ।सूर्यम् ।रोहयत्। दिवि ।वि ।गोभिः ।अद्रिम्। अ ।द्रिम ।ऐरयत्॥

पदार्थ : (इन्द्रः) सारे संसार को उत्पन्न करनेवाले परमैश्वर्यशाली जगदीश्वर ने (दीर्घाय) दीर्घ (चक्षसे) प्रकाश के लिए (दिवि) द्युलोक में (सूर्यम्) सूर्य को (आरोहयत्) चढ़ाया हुआ है। वही (गोभिः) सूर्य-किरणों से (अद्रिम्) बादल को (वि ऐरयत्) विकम्पित करता है, बरसाता है ॥४॥

भावार्थ : जगदीश्वर की ही यह महिमा है कि वह सूर्य को रच कर उसके द्वारा पदार्थों को प्रकाशित करता, दिन-रात-पक्ष-मास-ऋतु-अयन-वर्ष के चक्र को चलाता, बादल बनाता, वर्षा करता और प्राण-प्रदान आदि कार्य करता है ॥४॥


In Sanskrit:

ऋषि : मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ जीवात्मनोऽप्यधिष्ठातुर्जगदीश्वरस्य महिमानमाह।

पदपाठ : इन्द्र ।दीर्घायु ।चक्षसे ।आ ।सूर्यम् ।रोहयत्। दिवि ।वि ।गोभिः ।अद्रिम्। अ ।द्रिम ।ऐरयत्॥

पदार्थ : (इन्द्रः) सकलजगदुत्पादकः परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (दीर्घाय) विपुलाय (चक्षसे) प्रकाशाय (दिवि) द्युलोके (सूर्यम्) आदित्यम् (आ रोहयत्) आरूढं कृतवान्। स एव (गोभिः) सूर्यरश्मिभिः। [गावः इति रश्मिनाम। निघं० १।५।] (अद्रिम्) मेघम् [अद्रिरिति मेघनाम। निघं० १।१०।] (वि ऐरयत्) विकम्पयति, वर्षति। [वि पूर्वः ईर गतौ कम्पने च अदादिः, ण्यन्तः] ॥४॥२

भावार्थ : जगदीश्वरस्यैवायं महिमा यत् स सूर्यं विरच्य तद्द्वारा वस्तुप्रकाशनमहोरात्रपक्षमासऋत्वयनसंवत्सरचक्रचालनं मेघनिर्माणं वृष्टिं प्राणप्रदानादिकं च कार्यं करोति ॥४॥

टिप्पणी:१. ऋ० १।७।३।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिरपि मन्त्रमिममीश्वरविषये व्याख्यातवान्।