Samveda/804
तं त्वा धर्त्तारमोण्योः पवमान स्वर्दृशम्। हिन्वे वाजेषु वाजिनम्॥८०४
Veda : Samveda | Mantra No : 804
In English:
Seer : bhRRigurvaaruNirjamadagnirbhaargavo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : ta.m tvaa dharttaaramoNyo3ruu pavamaana svardRRisham . hinve vaajeShu vaajinam.804
Component Words : tam .ttvaa .dhartaaram .oNyoH .pavamaanaH .svardRRisham .svaH .dRRisham .hinve .vaajeShu .vaajinam .
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : इस प्रकार ब्रह्मविद्या में आचार्य का योगदान कहकर अब परमात्मा का विषय वर्णित करते हैं।
पदपाठ : तम् ।त्त्वा ।धर्तारम् ।ओण्योः ।पवमानः ।स्वर्दृशम् ।स्वः ।दृशम् ।हिन्वे ।वाजेषु ।वाजिनम् ॥
पदार्थ : हे (पवमान) पवित्रकर्त्ता, सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर ! (ओण्योः) द्युलोक और भूलोक को (धर्तारम्) धारण करनेवाले, (स्वर्दृशम्) सूर्य वा मोक्षानन्द का दर्शन करानेवाले, (वाजिनम्) बलवान् (तं त्वा) उस प्रसिद्ध तुझको, मैं (वाजेषु) बलों के निमित्त से (हिन्वे) प्रसन्न करता हूँ ॥२॥
भावार्थ : जो जगदीश्वर सूर्य, भूमि आदि को धारण करता है, वह विपत्तियों में बल-प्रदान द्वारा अपने उपासकों को भी क्यों न धारण करेगा ॥२॥
In Sanskrit:
ऋषि : भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : एवं ब्रह्मविद्यायामाचार्यस्य योगदानमुक्त्वा सम्प्रति परमात्मविषयमाह।
पदपाठ : तम् ।त्त्वा ।धर्तारम् ।ओण्योः ।पवमानः ।स्वर्दृशम् ।स्वः ।दृशम् ।हिन्वे ।वाजेषु ।वाजिनम् ॥
पदार्थ : हे (पवमान) पवित्रकर्तः सर्वान्तर्यामिन् जगदीश्वर ! (ओण्योः) द्यावापृथिव्योः। [ओण्यौ इति द्यावापृथिव्योर्नाम। निघं० ३।३०।] (धर्तारम्) धारकम्, (स्वर्दृशम्) सूर्यस्य मोक्षानन्दस्य वा दर्शकम्, (वाजिनम्) बलवन्तम् (तं त्वा) तादृशं प्रसिद्धं त्वाम्, अहम् (वाजेषु) बलेषु निमित्तेषु (हिन्वे) प्रीणयामि। [हिवि प्रीणनार्थो भ्वादिः, आत्मनेपदं छान्दसम्] ॥२॥
भावार्थ : यो जगदीश्वरो द्यावापृथिव्यादिकस्य धर्ताऽस्ति स विपत्सु बलप्रदानेन स्वोपासकानपि कुतो न धारयेत् ॥२॥
टिप्पणी:२. ऋ० ९।६५।११।