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Samveda/824

एवा ह्यसि वीरयुरेवा शूर उत स्थिरः । एवा ते राध्यं मनः॥८२४

Veda : Samveda | Mantra No : 824

In English:

Seer : shrutakakShaH sukakSho vaa aa~NgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : evaa hyasi viirayurevaa shuura uta sthiraH . evaa te raadhya.m manaH.824

Component Words :
eva .hi .asi .viirayuH .eva .shuuraH .uta. sthiraH .eva .te .raadhyam .manaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में २३२ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ अपने अन्तरात्मा को उद्बोधन है।

पदपाठ : एव ।हि ।असि ।वीरयुः ।एव ।शूरः ।उत। स्थिरः ।एव ।ते ।राध्यम् ।मनः॥

पदार्थ : हे मेरे अन्तरात्मा ! तू (एव हि) सचमुच (वीरयुः) वीरों का प्रेमी (असि) है, (एव) सचमुच, तू (शूरः) शूर (उत) और (स्थिरः) विपत्तियों तथा युद्धों में अविचल रहनेवाला है। (एव) सचमुच (ते) तेरा (मनः) मन (राध्यम्) सिद्धि प्राप्त करने योग्य है ॥१॥

भावार्थ : मनुष्य का आत्मा यदि अपनी शक्ति को पहचान ले तो संसार में महान् कार्यों को कर सकता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके २३२ क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योर्विषये व्याख्याता। अत्र स्वान्तरात्मा समुद्बोध्यते।

पदपाठ : एव ।हि ।असि ।वीरयुः ।एव ।शूरः ।उत। स्थिरः ।एव ।ते ।राध्यम् ।मनः॥

पदार्थ : हे मदीय अन्तरात्मन् ! त्वम् (एव हि) सत्यमेव (वीरयुः) वीरान् कामयमानः (असि) वर्तसे, (एव) सत्यमेव त्वम् (शूरः) वीरः (उत) अपि च (स्थिरः) विपत्सु युद्धेषु च अविचलः असि। (एव) सत्यमेव (ते) तव (मनः) चित्तम् (राध्यम्) साद्धुं योग्यम् अस्ति ॥१॥

भावार्थ : मनुष्यस्यात्मा चेत् स्वशक्तिं परिचिनुयात् तर्हि जगति महान्ति कर्माणि कर्त्तुं शक्नुयात् ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।९२।२८, अथ० २०।६०।१। साम० २३२। ऋषिः श्रुतकक्षः।