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Samveda/940

सोमः पुनान ऊर्मिणाव्यं वारं वि धावति। अग्रे वाचः पवमानः कनिक्रदत्॥९४०

Veda : Samveda | Mantra No : 940

In English:

Seer : agnishchaakShuShaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : uShNik | Tone : RRIShabhaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : somaH punaana uurmiNaavya.m vaara.m vi dhaavati . agre vaachaH pavamaanaH kanikradat.940

Component Words :
somaH .punaanaH .uurmiNaa .avyam .vaaram .vi .dhaavati .agre .vaachaH .pavamaanaH. kanikradat.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्निश्चाक्षुषः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ५७२ क्रमाङ्क पर ब्रह्मानन्द-रस के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ वही विषय प्रकारान्तर से दर्शाया जा रहा है।

पदपाठ : सोमः ।पुनानः ।ऊर्मिणा ।अव्यम् ।वारम् ।वि ।धावति ।अग्रे ।वाचः ।पवमानः। कनिक्रदत्॥

पदार्थ : (सोमः) रसनिधि परमेश्वर (ऊर्मिणा) आनन्दरस की तरङ्ग से (पुनानः) पवित्र करता हुआ (अव्यम्) अविनश्वर (वारम्) वरणीय आत्मा के प्रति (वि धावति) वेग से जाता है। वह (वाचः) स्तुतिवाणी से (अग्रे) पूर्व ही (पवमानः) बहता हुआ (कनिक्रदत्) कल-कल शब्द करता है ॥१॥यहाँ ब्रह्मानन्दरस प्रवाह में कारणभूत स्तुतिवाणी के प्रयोग से पहले ही ब्रह्मानन्द का प्रवाह वर्णित होने से ‘कारण से पूर्व कार्योदय होना रूप’ अतिशयोक्ति अलङ्कार है। साथ ही वस्तुतः ब्रह्मानन्द-प्रवाह में लहर और कलकल शब्द न होने पर भी उसमें लहर और कलकल शब्द का सम्बन्ध कथित होने से असम्बन्ध में सम्बन्धरूप अतिशयोक्ति भी है ॥१॥

भावार्थ : परमात्मा के ध्यान में मग्न स्तोता परमात्मा के पास से झरती हुई आनन्द की तरङ्गिणी को अपने अन्दर प्रविष्ट होते हुए अनुभव करके कृतार्थ हो जाता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्निश्चाक्षुषः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५७२ क्रमाङ्के ब्रह्मानन्दरसविषये व्याख्याता। अत्र स एव विषयः प्रकारान्तरेण प्रदर्श्यते।

पदपाठ : सोमः ।पुनानः ।ऊर्मिणा ।अव्यम् ।वारम् ।वि ।धावति ।अग्रे ।वाचः ।पवमानः। कनिक्रदत्॥

पदार्थ : (सोमः) रसनिधिः परमेश्वरः (ऊर्मिणा) आनन्दरसतरङ्गेण (पुनानः) पवित्रतामापादयन् (अव्यम्) अव्ययम् अविनश्वरम् (वारम्) वरणीयम् आत्मानम् (वि धावति) वेगेन गच्छति। सः (वाचः) स्तुतिगिरः (अग्रे) पूर्वमेव (पवमानः) प्रवहन् (कनिक्रदत्) कलकलशब्दं कुर्वन्, भवति इति शेषः ॥१॥अत्र ब्रह्मानन्दरसप्रवाहे कारणभूतायाः स्तुतिवाचः पूर्वमेव ब्रह्मानन्दप्रवाहवर्णनात् कारणात् प्राक् कार्योदयरूपोऽतिशयोक्ति- रलङ्कारः। किञ्च वस्तुतः ब्रह्मानन्दप्रवाहे ऊर्मेः कलकलशब्दस्य चाभावात् तद्वर्णनेऽसम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्तिः ॥१॥

भावार्थ : परमात्मध्याने मग्नः स्तोता परमात्मसकाशान्निर्झरन्तीमानन्द- तरङ्गिणीं स्वात्माभ्यन्तरे समाविशन्तीमनुभूय कृतार्थो जायते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०६।१०, ‘ऊ॒र्मिणाव्यो॒’ इति पाठः। साम० ५७२।