Samveda/975
यवंयवं नो अन्धसा पुष्टंपुष्टं परि स्रव। विश्वा च सोम सौभगा॥९७५
Veda : Samveda | Mantra No : 975
In English:
Seer : avatsaaraH kaashyapaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : yava.myava.m no andhasaa puShTa.mpuShTa.m pari srava . vishvaa cha soma saubhagaa.975
Component Words : yava.myavam .yavam.yavam .naH .andhasaa .puShTa.mpuShTam. puShTam.puShTam .pari .srava .vishvaa. cha .soma .saubhagaa. sau . bhagaa.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : अवत्सारः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : प्रथम मन्त्र में जगदीश्वर से प्रार्थना की गयी है।
पदपाठ : यवंयवम् ।यवम्।यवम् ।नः ।अन्धसा ।पुष्टंपुष्टम्। पुष्टम्।पुष्टम् ।परि ।स्रव ।विश्वा। च ।सोम ।सौभगा। सौ । भगा॥
पदार्थ : हे (सोम) जगदाधार, सर्वैश्वर्यवान्, ब्रह्माण्ड के अधिपति परमात्मन् ! आप (अन्धसा) रस से (पुष्टंपुष्टम्) अत्यधिक परिपुष्ट (यवंयवम्) जौ आदि सब भोग्य पदार्थों को (विश्वा सौभगा च) और सब सौभाग्यों को (नः) हमारे लिए (परिस्रव) चारों और प्रवाहित करो ॥१॥
भावार्थ : जिस जगत्पति ने सब बहुमूल्य पदार्थ रचे हैं, उसी की कृपा से मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा उन्हें पा सकता है ॥१॥
In Sanskrit:
ऋषि : अवत्सारः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : तत्रादौ जगदीश्वरः प्रार्थ्यते।
पदपाठ : यवंयवम् ।यवम्।यवम् ।नः ।अन्धसा ।पुष्टंपुष्टम्। पुष्टम्।पुष्टम् ।परि ।स्रव ।विश्वा। च ।सोम ।सौभगा। सौ । भगा॥
पदार्थ : हे (सोम) जगदाधार सर्वैश्वर्य ब्रह्माण्डाधिपते परमात्मन् ! त्वम् (अन्धसा) रसेन (पुष्टंपुष्टम्) अतिशयेन परिपुष्टम् (यवंयवम्) यवादिकं समग्रं भोग्यं पदार्थजातम्। [यव इत्युपलक्षणं समस्तस्य भोग्यपदार्थसमूहस्य।] (विश्वा सौभगा च) सर्वाणि सौभाग्यानि च (नः) अस्मभ्यम् (परिस्रव) परिप्रवाहय ॥१॥
भावार्थ : येन जगत्पतिना सर्वे बहुमूल्याः पदार्था रचितास्तत्कृपयैव मनुष्यः स्वपुरुषार्थेन तानधिगन्तुं पारयति ॥१॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।५५।१, ‘सोम॒ विश्वा॑ च॒ सौभ॑गा’ इति तृतीयः पादः।