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Samveda/1000

वृषा पुनान आयूषि स्तनयन्नधि बर्हिषि। हरिः सन्योनिमासदः॥१०००

Veda : Samveda | Mantra No : 1000

In English:

Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : vRRiShaa punaana aayu.m Shi stanayannadhi barhiShi . hariH sanyonimaasadaH.1000

Component Words :
vRRiShaa .punaanaH .aayuuShi .stanayan .adhi .barhiShi .hariH .san .yonim .aa. asadaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में फिर परमात्मा और आचार्य का विषय है।

पदपाठ : वृषा ।पुनानः ।आयूषि ।स्तनयन् ।अधि ।बर्हिषि ।हरिः ।सन् ।योनिम् ।आ। असदः॥

पदार्थ : हे परमात्मन् वा आचार्य ! (वृषा) आनन्द, विद्या आदि की वर्षा करनेवाले आप (आयूंषि) हमारे जीवनों को (पुनानः) पवित्र करते हुए (बर्हिषि अधि) अध्यात्मयज्ञ वा विद्यायज्ञ में (स्तनयन्) उपदेश करते हुए (हरिः सन्) पाप, दुर्व्यसन, दुःख आदि को हरनेवाले होते हुए (योनिम्) आत्मारूप सदन में वा गुरुकुल-सदन में (आ असदः) विराजमान होते हो ॥२॥

भावार्थ : परमात्मा हमारे हृदय में स्थित होकर अपनी प्रेरणा द्वारा और गुरु गुरुकुल में स्थित होकर सब विद्याओं के पढ़ाने तथा चरित्रनिर्माण के द्वारा हमारा उपकार करते हैं, इसलिए उनका पूजन और सत्कार सबको करना चाहिए ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनः परमात्मविषयमाचार्यविषयं चाह।

पदपाठ : वृषा ।पुनानः ।आयूषि ।स्तनयन् ।अधि ।बर्हिषि ।हरिः ।सन् ।योनिम् ।आ। असदः॥

पदार्थ : हे परमात्मन् आचार्य वा ! (वृषा) आनन्दविद्यादीनां वर्षकः त्वम् (आयूंषि) अस्माकं जीवनानि (पुनानः)पवित्रयन्, (बर्हिषि अधि) अध्यात्मयज्ञे विद्यायज्ञे वा (स्तनयन्) उपदिशन्, (हरिः सन्) पापदुर्व्यसनदुःखादीनां हर्ता सन् (योनिम्) आत्मसदनं गुरुकुलगृहं वा (आ असदः) आसीदसि ॥२॥

भावार्थ : परमात्माऽस्माकं हृदये स्थितः स्वप्रेरणया गुरुश्च गुरुकुले स्थितः सकलविद्याध्यापनेन चरित्रनिर्माणेन चास्मानुपकुरुतोऽतस्तयोः पूजनं सत्कारश्च सर्वैर्विधेयम् ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१९।३, ‘आ॒यु॑षु’, ‘योनि॒मास॑दत्’ इति पाठः।