Samveda/1013
प्राणा शिशुउमहीना हिन्वन्नृतस्य दीधितिम्। विश्वा परि प्रिया भुवदध द्विता॥१०१३
Veda : Samveda | Mantra No : 1013
In English:
Seer : trita aaptayaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : uShNik | Tone : RRIShabhaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : praaNaa shishurmahiinaa.m hinvannRRitasya diidhitim . vishvaa pari priyaa bhuvadadha dvitaa.1013
Component Words : praaNaa .pra .aanaa .shishuH .mahiinaam .hinvan .RRitasya. diidhitim .vishvaa .pari .priyaa .bhuvat .adha .dvitaa.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : त्रित आप्तयः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः
विषय : प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ५७० क्रमाङ्क पर परमात्मा के महत्त्व के विषय में व्याख्या की गयी थी। यहाँ वही विषय प्रकारान्तर से कहा जा रहा है।
पदपाठ : प्राणा ।प्र ।आना ।शिशुः ।महीनाम् ।हिन्वन् ।ऋतस्य। दीधितिम् ।विश्वा ।परि ।प्रिया ।भुवत् ।अध ।द्विता॥
पदार्थ : (प्राणा) सबको प्राण देनेवाला, (शिशुः) शिशु के समान प्रेम करने योग्य, (महीनाम्) मङ्गल, बुध, बृहस्पति, चन्द्रमा आदि की भूमियों के पृष्ठ पर (ऋतस्य) सूर्य की (दीधितिम्) किरणावलि को (हिन्वन्) भेजता हुआ, पवमान सोम अर्थात् सर्वान्तर्यामी परमेश्वर (विश्वा) सब (प्रिया) प्रिय वस्तुओं में (परि भुवत्) चारों ओर से व्याप्त है। (अध) और (द्विता) दो प्रकार के इसके कार्य हैं—बर्फ, नद, नदी, समुद्र, चन्द्रमा, बादल आदि सौम्य कार्य तथा आग, बिजली, सूर्य, आदि तैजस कार्य ॥१॥
भावार्थ : जो जगदीश्वर सब प्राणियों को प्राण देता है, सूर्य के प्रकाश को सब जगह बिखेरता है, सर्वान्तर्यामी होता हुआ सब जगत् की व्यवस्था करता है, उसकी सब मनुष्य आराधना क्यों न करें? ॥१॥
In Sanskrit:
ऋषि : त्रित आप्तयः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः
विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५७० क्रमाङ्के परमात्ममहत्त्वविषये व्याख्याता। अत्र स एव विषयः प्रकारान्तरेणोच्यते।
पदपाठ : प्राणा ।प्र ।आना ।शिशुः ।महीनाम् ।हिन्वन् ।ऋतस्य। दीधितिम् ।विश्वा ।परि ।प्रिया ।भुवत् ।अध ।द्विता॥
पदार्थ : (प्राणा) प्राणः, सर्वेषां प्राणयिता, (शिशुः) शिशुरिव स्पृहणीयः, (महीनाम्) मङ्गलबुधबृहस्पतिचन्द्रादिषु विद्यमानानां पृथिवीनां पृष्ठे (ऋतस्य) सूर्यस्य। [ऋतमित्येष (सूर्यः) वै सत्यम्। ऐ० ब्रा० ४।२०।] (दीधितिम्) किरणावलीम् (हिन्वन्) प्रेषयन्, पवमानः सोमः सर्वान्तर्यामी परमेश्वरः (विश्वा) विश्वानि (प्रिया) प्रियाणि वस्तूनि (परि भुवत्) सर्वतः व्याप्नोति। (अध) अथ च (द्विता) द्विधा अस्य कार्याणि सन्ति—हिमनदनदीसमुद्रचन्द्रपर्जन्यप्रभृतीनि सौम्यानि अग्निविद्युत्सूर्यादीनि तैजसानि च ॥१॥
भावार्थ : यो जगदीश्वरः सर्वान् प्राणिनः प्राणयति, सूर्यप्रकाशं सर्वत्र विकिरति, सर्वान्तर्यामी सन् सर्वजगद्व्यवस्थां करोति स सर्वैर्जनैः कुतो नाराधनीयः ॥१॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०२।१, साम० ५७०।