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Samveda/1017

त्वा रिहन्ति धीतयो हरिं पवित्रे अद्रुहः। वत्सं जातं न मातरः पवमान विधर्मणि॥१०१७

Veda : Samveda | Mantra No : 1017

In English:

Seer : rebhasuunuu kaashyapau | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : anuShTup | Tone : gaandhaaraH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : tvaa.m rihanti dhiitayo hari.m pavitre adruhaH . vatsa.m jaata.m na maataraH pavamaana vidharmaNi.1017

Component Words :
tvaam .rihinti .dhiitayaH .harim .pavitre .adruhaH .a .druhaH .vatsam. jaatam .na. maataraH. pavamaana .vidharmaNi .vi .dharmaNi.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : रेभसूनू काश्यपौ | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर : गान्धारः

विषय : अगले मन्त्र में जगदीश्वर का वर्णन है।

पदपाठ : त्वाम् ।रिहिन्ति ।धीतयः ।हरिम् ।पवित्रे ।अद्रुहः ।अ ।द्रुहः ।वत्सम्। जातम् ।न। मातरः। पवमान ।विधर्मणि ।वि ।धर्मणि॥

पदार्थ : हे (पवमान) पवित्रतादायक रस के भण्डार जगदीश्वर (हरिम्) पाप के हरनेवाले आपको (विधर्मणि) विशेषरूप से सद्गुणों के धारक (पवित्रे) पवित्र अन्तरात्मा में (अद्रुहः) द्रोहरहित (धीतयः) धी-वृत्तियाँ (रिहन्ति) चाटती हैं, ध्याती हैं, (जातम्) नवजात (वत्सम्) बछड़े को (मातरः न) जैसे गौ माताएँ चाटती हैं ॥२॥

भावार्थ : जैसे धेनुएँ अपने बछड़े को जीभ से चाटती हुई आनन्द अनुभव करती हैं, वैसे ही मनुष्य परमात्मा को ध्याते हुए आनन्द से तरङ्गित होते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : रेभसूनू काश्यपौ | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर : गान्धारः

विषय : अथ जगदीश्वरं वर्णयति।

पदपाठ : त्वाम् ।रिहिन्ति ।धीतयः ।हरिम् ।पवित्रे ।अद्रुहः ।अ ।द्रुहः ।वत्सम्। जातम् ।न। मातरः। पवमान ।विधर्मणि ।वि ।धर्मणि॥

पदार्थ : हे (पवमान) पवित्रतासम्पादक रसागार जगदीश्वर ! (हरिम्) पापहारिणम् (त्वाम्) विधर्मणि विशेषेण सद्गुणानां धारके, (पवित्रे) निर्मले अन्तरात्मनि (अद्रुहः) द्रोहरहिताः (धीतयः) धीवृत्तयः (रिहन्ति) लिहन्ति, ध्यायन्ति, (जातम्) नवजातम् (वत्सम्) तर्णकम् (मातरः न) गावो यथा रिहन्ति लिहन्ति तद्वत् ॥२॥

भावार्थ : यथा धेनवो स्ववत्सं जिह्वया लिहन्त्य आनन्दमनुभवन्ति तथैव मनुष्याः परमात्मानं ध्यायन्त आनन्देन तरङ्गिता जायन्ते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१००।७, ‘धीतयो’ इत्यत्र ‘मा॒तरो॒’, ‘मातरः’ इत्यत्र ‘धे॒नवः॒’ इति भेदः।