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Samveda/1044

तं त्वा मदाय घृष्वय उ लोककृत्नुमीमहे। तव प्रशस्तये महे॥१०४४

Veda : Samveda | Mantra No : 1044

In English:

Seer : medhaatithiH kaaNvaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : ta.m tvaa madaaya ghRRiShvaya u lokakRRitnumiimahe . tava prashastaye mahe.1044

Component Words :
tam .tvaa .madaaya .dhRRiShvaya .u .lokakRRitnum. loka .kRRitnum .iimahe .tava .prashastaye.pra .shastaye .mahe.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : मेधातिथिः काण्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अब उपासक परमात्मा को कह रहा है।

पदपाठ : तम् ।त्वा ।मदाय ।धृष्वय ।उ ।लोककृत्नुम्। लोक ।कृत्नुम् ।ईमहे ।तव ।प्रशस्तये।प्र ।शस्तये ।महे॥

पदार्थ : हे पवमान सोम अर्थात् पवित्रकर्ता रसागार परमात्मन् ! (तम् उ) उस (लोककृत्नुम्) लोकों के रचयिता (त्वा) तुझे हम (घृष्वये) बुराईयों से संघर्ष करने में समर्थ (मदाय) उत्साह के लिए (ईमहे) प्राप्त करते हैं। हम (महे) महती (प्रशस्तये) प्रशस्ति पाने के लिए (तव) तेरे हो जाएँ ॥८॥

भावार्थ : परमात्मा के साथ मित्रता संस्थापित करके ही मनुष्य जीवन में सफलता, विजय और यश पा सकता है ॥८॥


In Sanskrit:

ऋषि : मेधातिथिः काण्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथोपासकः परमात्मानमाह।

पदपाठ : तम् ।त्वा ।मदाय ।धृष्वय ।उ ।लोककृत्नुम्। लोक ।कृत्नुम् ।ईमहे ।तव ।प्रशस्तये।प्र ।शस्तये ।महे॥

पदार्थ : हे पवमान सोम पवित्रकर्तः रसागार परमात्मन् ! (तम् उ) तं खलु (लोककृत्नुम्) लोकानां रचयितारम् (त्वा) त्वाम्, वयम् (घृष्वये) संघर्षक्षमाय (मदाय) उत्साहाय (ईमहे) प्राप्नुमः। वयम् (महे) महत्यै (प्रशस्तये) प्रशंसायै कीर्तये वा (तव) त्वत्सखायः, स्यामेति शेषः ॥८॥

भावार्थ : परमात्मना सह सख्यं संस्थाप्यैव मानवो जीवने साफल्यं विजयं यशश्च प्राप्तुं शक्नोति ॥८॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।२।८, ‘तव॒प्रश॑स्तयो म॒हीः’ इति तृतीयः पादः।