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Samveda/1046

अस्मभ्यमिन्दविन्द्रियं मधोः पवस्व धारया। पर्जन्यो वृष्टिमाइव (कै)।।॥१०४६

Veda : Samveda | Mantra No : 1046

In English:

Seer : medhaatithiH kaaNvaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : asmabhyamindavindriya.m madhoH pavasva dhaarayaa . parjanyo vRRiShTimaa.m iva.1046

Component Words :
asmabhyam .indo .indriyam .madhoH .pavasva .dhaarayaa. parjanyaH .pRRiShTimaan. iva.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : मेधातिथिः काण्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

पदपाठ : अस्मभ्यम् ।इन्दो ।इन्द्रियम् ।मधोः ।पवस्व ।धारया। पर्जन्यः ।पृष्टिमान्। इव॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रस के भण्डार, करुणासागर परमेश ! (वृष्टिमान्) वर्षा करनेवाले (पर्जन्यः इव) बादल के समान, आप (मधोः) मधुर आनन्द-रस की (धारया) धारा के साथ (अस्मभ्यम्) हम उपासकों के लिए (इन्द्रियम्) जीवात्मा से सेवित आत्मबल (पवस्व) प्रवाहित कीजिए ॥१०॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥१०॥

भावार्थ : बादल की रस-वर्षा से पृथिवी के समान परमेश्वर की आनन्द-वर्षा से मनुष्य की आत्मभूमि सरस, सद्गुणों से अङ्कुरित और हरी-भरी हो जाती है ॥१०॥इस खण्ड में परमात्मा के गुण-कर्मों का, उपास्य-उपासक सम्बन्ध का, ब्रह्मानन्द-रस का और प्रसङ्गतः पर्जन्य का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥सप्तम अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥


In Sanskrit:

ऋषि : मेधातिथिः काण्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ परमेश्वरं प्रार्थयते।

पदपाठ : अस्मभ्यम् ।इन्दो ।इन्द्रियम् ।मधोः ।पवस्व ।धारया। पर्जन्यः ।पृष्टिमान्। इव॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रसागार करुणावरुणालय परमेश ! (वृष्टिमान्) वृष्टिकर्ता (पर्जन्यः इव) मेघः इव, त्वम् (मधोः) मधुरस्य आनन्दरसस्य (धारया) प्रवाहसन्तत्या सह (अस्मभ्यम्) उपासकेभ्यो नः (इन्द्रियम्) इन्द्रेण जीवात्मना जुष्टम् आत्मबलम् (पवस्व) प्रक्षर ॥१०॥अत्रोपमालङ्कारः ॥१०॥

भावार्थ : पर्जन्यस्य रसवृष्ट्या पृथिवीव परमेश्वरस्यानन्दवृष्ट्या मनुष्यस्यात्मभूमिः सरसा सद्गुणप्ररोहा हरिता भरिता च जायते ॥१०॥अस्मिन् खण्डे परमात्मनो गुणकर्मणामुपास्योपासकसंबन्धस्य ब्रह्मानन्दरसस्य प्रसङ्गतः पर्जन्यस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेदितव्या ॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।२।९ ‘विन्द्रियं मधोः’ इत्यत्र ‘विन्द्र॒युर्मध्वः॑’ इति पाठः।