Samveda/1063
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः। गृणानो जमदग्निना (वि)।। [धा. । उ नास्ति । स्व. ।]॥१०६३
Veda : Samveda | Mantra No : 1063
In English:
Seer : jamadagnirbhaargavaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : uta no gomatiiriSho vishvaa arSha pariShTubhaH . gRRiNaano jamadagninaa.1063
Component Words : uta .naH .gomatiiH. iShaH .vishvaaH .arSha .pariShTubhaH .pari .stubhaH. gRRiNaanaH .jamadagninaa .jamat .agninaa.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : आगे फिर वही विषय है।
पदपाठ : उत ।नः ।गोमतीः। इषः ।विश्वाः ।अर्ष ।परिष्टुभः ।परि ।स्तुभः। गृणानः ।जमदग्निना ।जमत् ।अग्निना॥
पदार्थ : (उत) और हे सोम अर्थात् विद्वान् आचार्य ! (जमदग्निना) समित्पाणि अग्निहोत्री शिष्यवर्ग से (गृणानः) स्तुति किये जाते हुए आप (नः) हम शिष्यों को (गोमतीः) वेदवाणी से युक्त, (परिष्टुभः) सहारा देनेवाली (विश्वाः) सब (इषः) अभीष्ट अपरा तथा परा नामक विद्याएँ (अर्ष) प्रदान करो, पढ़ाओ ॥३॥
भावार्थ : आचार्य का भली-भाँति सत्कार करके, उसके पास से अध्यात्म विज्ञान और भौतिक विज्ञान सम्पूर्ण निष्ठा के साथ ग्रहण करके, विद्वान् होकर शिष्य समाज में ज्ञान का विस्तार करें ॥३॥
In Sanskrit:
ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ पुनः स एव विषय उच्यते।
पदपाठ : उत ।नः ।गोमतीः। इषः ।विश्वाः ।अर्ष ।परिष्टुभः ।परि ।स्तुभः। गृणानः ।जमदग्निना ।जमत् ।अग्निना॥
पदार्थ : (उत) अपि च, हे सोम विद्वन् आचार्य ! (जमदग्निना) समित्पाणिना प्रज्वलिताग्निना शिष्यगणेन (गृणानः) स्तूयमानः त्वम् (नः) शिष्येभ्योऽस्मभ्यम् (गोमतीः) वेदवाग्युक्ताः (परिष्टुभः) आश्रयप्रदायिनी (विश्वाः) सर्वाः (इषः) अभीष्टाः अपरापराख्याः विद्याः (अर्ष) प्रयच्छ, अध्यापय ॥३॥
भावार्थ : आचार्यं सम्यक् सत्कृत्य तत्सकाशादध्यात्मविज्ञानानि भौतिकविज्ञानानि चापि सम्पूर्णनिष्ठया गृहीत्वा विद्वांसो भूत्वा शिष्याः समाजे ज्ञानं विस्तारयेयुः ॥३॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।६२।२४।