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Samveda/1116

प्र काव्यमुशनेव ब्रुवाणो देवो देवानां जनिमा विवक्ति। महिव्रतः शुचिबन्धुः पावकः पदा वराहो अभ्येति रेभन्॥१११६

Veda : Samveda | Mantra No : 1116

In English:

Seer : vRRiShagaNo vaasiShThaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : triShTup | Tone : dhaivataH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pra kaavyamushaneva bruvaaNo devo devaanaa.m janimaa vivakti . mahivrataH shuchibandhuH paavakaH padaa varaaho abhyeti rebhan.1116

Component Words :
pra. kaavyam. ushanaa .iva. bruvaaNaH. devaH .devaanaam .janim .vivikti. mahivrataH .mahi .vrataH .shuchibandhuH .shuchi .bandhu .paavakaH .padaa. varaahaH .abhi .eti. rebhan.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : वृषगणो वासिष्ठः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : त्रिष्टुप् | स्वर : धैवतः

विषय : प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ५२४ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्या की जा चुकी है। यहाँ आचार्य और शिष्य का विषय कहा जा रहा है।

पदपाठ : प्र। काव्यम्। उशना ।इव। ब्रुवाणः। देवः ।देवानाम् ।जनिम् ।विविक्ति। महिव्रतः ।महि ।व्रतः ।शुचिबन्धुः ।शुचि ।बन्धु ।पावकः ।पदा। वराहः ।अभि ।एति। रेभन्॥

पदार्थ : (उशना इव) मनुष्यों के हितकाङ्क्षी परमेश्वर के समान अर्थात् जैसे परमेश्वर ने सृष्टि के आदि में वेदकाव्य का उपदेश किया था, वैसे ही (काव्यम्) वेदकाव्य को (प्र ब्रुवाणः) छात्रों के लिए उपदेश करता हुआ (देवः) दिव्य गुणों से युक्त सोम अर्थात् विद्यारस का भण्डार आचार्य (देवानाम्) जगत् के दिव्य पदार्थ सूर्य, चन्द्र, विद्युत्, नक्षत्र, जल, वायु, अग्नि, पर्वत, नदी, समुद्र आदियों के (जनिम्) जन्म की (विवत्ति) व्याख्या करता है अर्थात् कैसे उन पदार्थों की उत्पत्ति हुई, उन पदार्थों में क्या गुण हैं, क्या उनका उपयोग है, आदि बातें शिष्यों को बतलाता है। (महिव्रतः) महान् व्रतों और महान् कर्मोंवाला, (शुचिबन्धुः) पवित्र परमेश्वर जिसका बन्धु है, ऐसा (पावकः) पवित्रता देनेवाला (वराहः) जलवर्षी बादल के समान विद्यावर्षी आचार्य (पदा) शास्त्रों के सुबन्त एवं तिङन्त पदों का (रेभन्) उच्चारण करता हुआ (अभ्येति) पढ़ाने के लिए आता है ॥१॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ : सब शास्त्रों में पारंगत, सुयोग्य आचार्य शास्त्र के गूढ़ तत्त्व का भी इस प्रकार उपदेश करता है, जिससे विद्यार्थियों की बुद्धि में वह विषय हस्तामलकवत् स्पष्ट हो जाता है। स्वयं पवित्र, दूसरों को पवित्र करनेवाला, परमेश्वर का सखा वह आचार्य छात्रों का वन्दनीय होता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : वृषगणो वासिष्ठः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : त्रिष्टुप् | स्वर : धैवतः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५२४ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्राचार्यशिष्यविषय उच्यते।

पदपाठ : प्र। काव्यम्। उशना ।इव। ब्रुवाणः। देवः ।देवानाम् ।जनिम् ।विविक्ति। महिव्रतः ।महि ।व्रतः ।शुचिबन्धुः ।शुचि ।बन्धु ।पावकः ।पदा। वराहः ।अभि ।एति। रेभन्॥

पदार्थ : (उशना इव) जनानां हितकामः परमेश्वर इव, परमेश्वरो यथा सृष्ट्यादौ वेदकाव्यमुपदिष्टवान् तथा (काव्यम्) वेदकाव्यम् (प्र ब्रुवाणः) छात्रेभ्य उपदिशन् (देवः) दिव्यगुणयुक्तः सोमः विद्यारसागारः आचार्यः (देवानाम्) जगतो दिव्यपदार्थानां सूर्यचन्द्रविद्युन्नक्षत्रजलवाय्वग्निगिरिसरित्सागर- प्रभृतीनाम् (जनिम) जन्म (विवक्ति) व्याख्याति। कथं तेषां पदार्थानां जन्म संजातं, किंगुणास्ते पदार्थाः, कश्च तेषामुपयोग इत्यादि शिष्याणां पुरतो व्याचष्टे। [वच परिभाषणे, अदादिः, वक्ति इति प्राप्ते व्यत्ययेन विकरणस्य श्लुः, बहुलं छन्दसि। अ० ७।४।७८ इत्यभ्यासस्य इत्वम्।] (महिव्रतः) महाव्रतः महाकर्मा वा, (शुचिबन्धुः) शुचिः पवित्रः परमेश्वरो बन्धुर्यस्य सः, (पावकः) पवित्रतासम्पादकः (वराहः) जलवर्षको मेघ इव विद्यावर्षकः आचार्यः। [वराहो मेघो भवति वराहारः। निरु० ५।४।२१।] (पदा) शास्त्राणां सुप्तिङन्तादीनि पदानि (रेभन्) उच्चारयन्। [रेभृ शब्दे, भ्वादिः।] (अभ्येति) अध्यापनार्थमागच्छति ॥१॥अत्रोपमालङ्कारः ॥१॥

भावार्थ : सर्वेषां शास्त्राणां पारंगतः सुयोग्य आचार्यो गूढमपि शास्त्रतत्त्वं तथोपदिशति यथा विद्यार्थिनां मतौ स विषयो हस्तामलकवत् स्पष्टो जायते। स्वयं पवित्रोऽन्येषां पावकः परमेश्वरस्य सखा स आचार्यश्छात्राणां वन्दनीयः खलु ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।९७।७, साम० ५२४।