Samveda/1147
इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः॥११४७
Veda : Samveda | Mantra No : 1147
In English:
Seer : madhuchChandaa vaishvaamitraH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : indraa yaahi dhiyeShito viprajuutaH sutaavataH . upa brahmaaNi vaaghataH.1147
Component Words : indra .aa .yaahi .dhiyaa .iShitaH .viprajuutaH. vipra .juutaH .sutaavataH .upa .brahmaaNi .vaaghataH.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में फिर वही विषय है।
पदपाठ : इन्द्र ।आ ।याहि ।धिया ।इषितः ।विप्रजूतः। विप्र ।जूतः ।सुतावतः ।उप ।ब्रह्माणि ।वाघतः॥
पदार्थ : हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! (धिया इषितः) ध्यान द्वारा प्रेरित, (विप्रजूतः) मेधावी जीवात्मा से स्तुति किये गये आप (सुतावतः) पुत्रवान्, (वाघतः) अध्यात्मयज्ञ के वाहक मेरे (ब्रह्माणि) स्तोत्रों के (उप आ गहि) समीप आओ ॥२॥
भावार्थ : परिवार में पत्नी, पुत्र, पौत्र आदि सहित सबको प्रातः-सायम् ध्यानपूर्वक परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए ॥२॥
In Sanskrit:
ऋषि : मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ पुनस्तमेव विषयमाह।
पदपाठ : इन्द्र ।आ ।याहि ।धिया ।इषितः ।विप्रजूतः। विप्र ।जूतः ।सुतावतः ।उप ।ब्रह्माणि ।वाघतः॥
पदार्थ : हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! (धिया इषितः) ध्यानेन प्रेरितः, (विप्रजूतः) मेधाविना जीवात्मना स्तुतः त्वम् (सुतावतः) पुत्रवतः (वाघतः) अध्यात्मयज्ञवाहकस्य मम (ब्रह्माणि) स्तोत्राणि (उप आ याहि) उपागच्छ ॥२॥२
भावार्थ : परिवारे पत्नीपुत्रपौत्रादिसहितैः सर्वैः प्रातःसायं ध्यानेन परमेश्वर आराधनीयः ॥२॥
टिप्पणी:१. ऋ० १।३।५, य० २०।८८, अथ० २०।८४।२।२. दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयम् ऋग्भाष्ये परमेश्वरविषये यजुर्भाष्ये च विद्वद्विषये व्याख्यातः।