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Samveda/1162

प्र सोम याहीन्द्रस्य कुक्षा नृभिर्येमानो अद्रिभिः सुतः (पु)।। [धा. । उ । स्व. ।]॥११६२

Veda : Samveda | Mantra No : 1162

In English:

Seer : agnaye dhiShNyo aishvaraaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : dvipadaa viraaT | Tone : pa~nchamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pra soma yaahiindrasya kukShaa nRRibhiryemaano adribhiH sutaH.1162

Component Words :
pra .soma .yaahi .indrasya .kukShaa .nRRibhiH .yemaanaH .adribhiH .a. dribhiH .sutaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अगले मन्त्र में फिर वही विषय वर्णित है।

पदपाठ : प्र ।सोम ।याहि ।इन्द्रस्य ।कुक्षा ।नृभिः ।येमानः ।अद्रिभिः ।अ। द्रिभिः ।सुतः॥

पदार्थ : हे (सोम) ज्ञानरस ! (नृभिः) नेता गुरुओं से (येमानः) नियन्त्रित किया जाता हुआ, (अद्रिभिः) अखण्डित पाण्डित्यों से (सुतः) प्रेरित किया गया तू (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (कुक्षा) गर्भ में (प्र याहि) उत्तम प्रकार से पहुँच ॥३॥

भावार्थ : विद्वान्, नियमपरायण गुरु लोग जब छात्रों को पढ़ाते हैं, तब उन छात्रों के अन्तरात्मा में विशुद्ध ज्ञान-रस का प्रवाह सुगमता से प्रकट हो जाता है ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अथ पुनः स एव विषय उच्यते।

पदपाठ : प्र ।सोम ।याहि ।इन्द्रस्य ।कुक्षा ।नृभिः ।येमानः ।अद्रिभिः ।अ। द्रिभिः ।सुतः॥

पदार्थ : हे (सोम) ज्ञानरस ! (नृभिः) नायकैः गुरुभिः (येमानः) नियम्यमानः, (अद्रिभिः) अखण्डितैः पाण्डित्यैः (सुतः) प्रेरितः त्वम् (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (कुक्षा) गर्भे। [कुक्षौ इति प्राप्ते ‘सुपां सुलुक्०’ अ० ७।१।३९ इति विभक्तेर्डादेशः] (प्र याहि) प्र गच्छ ॥३॥

भावार्थ : विद्वांसो नियमपरायणा गुरवो यदा छात्रानध्यापयन्ति तदा तेषां छात्राणामन्तरात्मनि विशुद्धज्ञानरसप्रवाहः सुतरामाविर्भवति ॥३॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०९।१८।