Donation Appeal
Choose Mantra
Samveda/1222

तमिन्द्रं वाजयामसि महे वृत्राय हन्तवे। स वृषा वृषभो भुवत्॥१२२२

Veda : Samveda | Mantra No : 1222

In English:

Seer : sukakSha aa~NgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : tamindra.m vaajayaamasi mahe vRRitraaya hantave . sa vRRiShaa vRRiShabho bhuvat.1222

Component Words :
tam .indram .vaajayaamasi .mahe .vRRitraaya .hantave. saH .vRRidhaa .vRRiShabhaH .bhuvat.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : सुकक्ष आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ११९ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा का विषय कहते हैं।

पदपाठ : तम् ।इन्द्रम् ।वाजयामसि ।महे ।वृत्राय ।हन्तवे। सः ।वृधा ।वृषभः ।भुवत्॥

पदार्थ : (महे) बड़े (वृत्राय) विघ्न, विद्रोह, उपद्रव, पाप आदि रूप शत्रु का (हन्तवे) वध करने के लिए (तम्) अपने शरीर में अधिष्ठाता रूप से विद्यमान उस (इन्द्रम्) शत्रुविदारक जीवात्मा को, हम (वाजयामसि) बलवान् करते हैं। (वृषा) बलवान् (सः) वह जीवात्मा (वृषभः) सुख-सम्पदा की वर्षा करनेवाला (भुवत्) होवे ॥१॥

भावार्थ : अपने अन्तरात्मा को उत्साहित करके सभी बाह्य और आन्तरिक शत्रु जीते जा सकते हैं ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : सुकक्ष आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ११९ क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योर्विषये व्याख्याता। अत्र जीवात्मविषय उच्यते।

पदपाठ : तम् ।इन्द्रम् ।वाजयामसि ।महे ।वृत्राय ।हन्तवे। सः ।वृधा ।वृषभः ।भुवत्॥

पदार्थ : (महे) महते, (वृत्राय) विघ्नविद्रोहोपद्रवपापादिरूपाय शत्रवे। [द्वितीयार्थे चतुर्थी।] (हन्तवे) हन्तुम् (तम्) स्वदेहेऽधिष्ठातृत्वेन विद्यमानम् (इन्द्रम्) रिपुविदारकं जीवात्मानम् (वाजयामसि) बलिनं कुर्मः। (वृषा) बलवान् (सः) असौ जीवात्मा (वृषभः) सुखसम्पद्वर्षकः (भुवत्) भवतु ॥१॥

भावार्थ : स्वकीयमन्तरात्मानमुत्साह्य सर्वेऽपि बाह्या आभ्यन्तराश्च शत्रवो जेतुं शक्यन्ते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।९३।७, अथ० २०।४७।१, १३७।१२। साम० ११९, ऋषिः श्रुतकक्षः।