Donation Appeal
Choose Mantra
Samveda/1226

तव त्य इन्दो अन्धसो देवा मधोकव्याशत। पवमानस्य मरुतः॥१२२६

Veda : Samveda | Mantra No : 1226

In English:

Seer : uchathyaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : tava tya indo andhaso devaa madhorvyaashata . pavamaanasya marutaH.1226

Component Words :
tava .tye. indo .andhasaH. devaaH. madhoH .vi .aashata .pavamaanasya .marutaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : उचथ्यः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में आनन्द-रस का विषय है।

पदपाठ : तव ।त्ये। इन्दो ।अन्धसः। देवाः। मधोः ।वि ।आशत ।पवमानस्य ।मरुतः॥

पदार्थ : हे (इन्दो) आनन्द-रस से भिगोनेवाले परमात्मन् ! (तव) आपके (मधोः) मधुर, (पवमानस्य) पवित्र करनेवाले (अन्धसः) आनन्द-रस का (त्ये) वे (मरुतः) प्रशस्त प्राणवाले (देवाः) दिव्यगुणी विद्वान् लोग (व्याशत) उपभोग करते हैं ॥२॥

भावार्थ : प्राणायाम आदि योगाभ्यास से जिन्होंने अपने सब दोषों को जला डाला है, ऐसे विद्वान् जन ही ब्रह्मानन्द-रस के अधिकारी होते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : उचथ्यः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथान्दरसविषयमाह।

पदपाठ : तव ।त्ये। इन्दो ।अन्धसः। देवाः। मधोः ।वि ।आशत ।पवमानस्य ।मरुतः॥

पदार्थ : हे (इन्दो) आनन्दरसेन क्लेदक परमात्मन् ! (तव) त्वदीयस्य (मधोः) मधुरस्य, (पवमानस्य) पवित्रीकुर्वाणस्य (अन्धसः) आनन्दरसस्य। [द्वितीयार्थे षष्ठी।] (त्ये) ते (मरुतः) प्रशस्तप्राणाः (देवाः) दिव्यगुणा विद्वांसः (व्याशत) व्यश्नुवते, उपयुञ्जते। [विपूर्वः अशू व्याप्तौ, लडर्थे लुङि प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपम्] ॥२॥

भावार्थ : प्राणायामादिना योगाभ्यासेन दग्धसकलकल्मषा विद्वांस एव जना ब्रह्मानन्दरसस्याधिकारिणो जायन्ते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।५१।३, ‘मधो॒र्व्य॑श्नते’ इति पाठः।