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Samveda/1233

उभय शृणवच्च न इन्द्रो अर्वागिदं वचः। सत्राच्या मघवान्त्सोमपीतये धिया शविष्ठ आ गमत्॥१२३३

Veda : Samveda | Mantra No : 1233

In English:

Seer : bhargaH praagaathaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : baarhataH pragaathaH (viShamaa bRRihatii samaa satobRRihatii) | Tone : madhyamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : ubhaya.m shRRiNavachcha na indro arvaagida.m vachaH . satraachyaa maghavaantsomapiitaye dhiyaa shaviShTha aa gamat.1233

Component Words :
ubhayam .shRRiNavat .cha .naH. indraH .arvaak .idam. vachaH .satraachyaa .satraa .chyaa .maghavaan .somapiitaye .soma .piitaye .dhiyaa .shaviShTha. aa .gamat.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : भर्गः प्रागाथः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती समा सतोबृहती) | स्वर : मध्यमः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में २९० क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में की गयी थी। यहाँ आचार्य का विषय कहा गया है।

पदपाठ : उभयम् ।शृणवत् ।च ।नः। इन्द्रः ।अर्वाक् ।इदम्। वचः ।सत्राच्या ।सत्रा ।च्या ।मघवान् ।सोमपीतये ।सोम ।पीतये ।धिया ।शविष्ठ। आ ।गमत्॥

पदार्थ : (इन्द्रः) विद्या के ऐश्वर्य से युक्त आचार्य (नः अर्वाक्) हमारे अभिमुख होकर (इदम्) इस हमसे सुनाए जाते हुए (उभयं वचः) पद्यात्मक और गद्यात्मक दोनों प्रकार के पढ़ाए हुए शास्त्र-वचनों को (शृणवत्) सुने। (मघवान्) विद्यादान देनेवाला, (शविष्ठः) विद्या और चरित्र से बलवान् वह आचार्य (सत्राच्या) सत्य का अनुसरण करनेवाली (धिया) बुद्धि वा क्रिया से (सोमपीतये) हमें ज्ञानरस वा ब्रह्मानन्दरस पिलाने के लिए (आगमत्) हमारे पास आये ॥१॥

भावार्थ : गुरुओं को चाहिए कि प्रेम से छात्रों को पढ़ायें और प्रतिदिन पढ़ाये हुए पाठ को अगले दिन सुनें, जिससे इसकी परीक्षा हो सके कि छात्रों ने यह पाठ याद कर लिया या नहीं। सिखाये हुए योगाङ्गों की भी समय-समय पर परीक्षा लें, जिससे छात्र समाधि में ब्रह्मानन्द की प्राप्ति के योग्य हो सकें ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : भर्गः प्रागाथः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती समा सतोबृहती) | स्वर : मध्यमः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके २९० क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योर्विषये व्याख्याता। अत्राचार्यविषय उच्यते।

पदपाठ : उभयम् ।शृणवत् ।च ।नः। इन्द्रः ।अर्वाक् ।इदम्। वचः ।सत्राच्या ।सत्रा ।च्या ।मघवान् ।सोमपीतये ।सोम ।पीतये ।धिया ।शविष्ठ। आ ।गमत्॥

पदार्थ : (इन्द्रः) विद्यैश्वर्यवान् आचार्यः (नः अर्वाक्) अस्मदभिमुखं भूत्वा (इदम्) एतद् अस्माभिः (श्राव्यमाणम् उभयं वचः) पद्यात्मकं गद्यात्मकं चोभयविधम् अध्यापितं शास्त्रवचनसमूहम् (शृणवत्) शृणुयात्। [शृणोतेर्लेटि रूपम्।] (मघवान्) विद्यादानवान्, (शविष्ठः) विद्यया चरित्रेण च बलवत्तमः स आचार्यः (सत्राच्या) सत्यानुगामिन्या (धिया) बुद्ध्या क्रियया च (सोमपीतये) अस्माकं ज्ञानरसपानाय ब्रह्मानन्दरसपानाय च (आ गमत्) अस्मान् आगच्छेत् ॥१॥

भावार्थ : गुरुभिः प्रेम्णा छात्रा अध्यापनीयाः प्रत्यहमध्यापितश्च पाठ आगामिदिवसे श्रोतव्यो येन छात्रैः स स्मृतो न वेति परीक्षा स्यात्। ते शिक्षितानां योगाङ्गानामपि समये समये परीक्षां कुर्युर्येन छात्राः समाधौ ब्रह्मानन्दप्राप्तियोग्या भवेयुः ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।६१।१, अथ० २०।११३।१, उभयत्र ‘म॒घवा॒ सोम॑पीतये’ इति पाठः। साम० २९०।