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Samveda/1284

एष सूर्यमरोचयत्पवमानो अधि द्यवि। पवित्रे मत्सरो मदः॥१२८४

Veda : Samveda | Mantra No : 1284

In English:

Seer : priyamedhaH aa~NgirasaH (prathama paadaH) nRRimedha aa~NgirasaH (sheShaastrayaH paadaaH) | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : eSha suuryamarochayatpavamaano adhi dyavi . pavitre matsaro madaH.1284

Component Words :
eShaH .suuryam .arochayat .pavamaanaH .adhi .dyavi .pavitre .matsaraH .madaH .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः (प्रथम पादः) नृमेध आङ्गिरसः (शेषास्त्रयः पादाः) | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में परमात्मा का कर्तृत्त्व और महत्त्व वर्णित किया गया है।

पदपाठ : एषः ।सूर्यम् ।अरोचयत् ।पवमानः ।अधि ।द्यवि ।पवित्रे ।मत्सरः ।मदः ॥

पदार्थ : (एषः) इस (पवमानः) क्रियाशील सोम परमात्मा ने (द्यवि अधि) द्युलोक में (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयत्) चमकाया है और (मदः) आनन्दमय यह परमात्मा (पवित्रे) पवित्र अन्तरात्मा में (मत्सरः) आनन्दजनक होता है ॥५॥

भावार्थ : बाहरी जगत् में सूर्य, चाँद, तारावली आदि में और अन्दर के जगत् मन, मस्तिष्क आदि में जो कर्तृत्व और महत्त्व दिखायी देता है, वह सब परमात्मा का ही है ॥५॥


In Sanskrit:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः (प्रथम पादः) नृमेध आङ्गिरसः (शेषास्त्रयः पादाः) | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ परमात्मनः कर्तृत्वं महत्त्वं चाह।

पदपाठ : एषः ।सूर्यम् ।अरोचयत् ।पवमानः ।अधि ।द्यवि ।पवित्रे ।मत्सरः ।मदः ॥

पदार्थ : (एषः) अयम् (पवमानः) क्रियाशीलः सोमः परमात्मा (द्यवि अधि) द्युलोके (सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयत्) रोचितवानस्ति। अपि च, (मदः) आनन्दमयः एष परमात्मा (पवित्रे) पूतेऽन्तरात्मनि (मत्सरः) आनन्दजनको जायते। [माद्यतेः ‘कृधूमदिभ्यः कित्’ उ० ३।७३ इत्यनेन सरन् प्रत्ययः] ॥५॥

भावार्थ : बाह्ये जगति सूर्यचन्द्रतारावल्यादौ मानवदेहाभ्यन्तरे मनोमस्तिष्कादौ च यत् कर्तृत्वं महत्त्वं च दृश्यते तत् सर्वं परमात्मन एव ॥५॥