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Samveda/1334

शिशुं जज्ञान हरिं मृजन्ति पवित्रे सोमं देवेभ्य इन्दुम् (का)।। [धा. । उ । स्व।]॥१३३४

Veda : Samveda | Mantra No : 1334

In English:

Seer : agnaye dhiShNyo aishvaraaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : dvipadaa viraaT | Tone : pa~nchamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : shishu.m jaj~naana.m hari.m mRRijanti pavitre soma.m devebhya indum.1334

Component Words :
shishum . jaj~naanam . harim . mRRijanti . pavitre . somam . devebhyaH . indum.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अगले मन्त्र में समावर्तन संस्कार का वर्णन है।

पदपाठ : शिशुम् । जज्ञानम् । हरिम् । मृजन्ति । पवित्रे । सोमम् । देवेभ्यः । इन्दुम्॥

पदार्थ : (शिशुं जज्ञानम्) नवस्नातक के रूप में आचार्य के गर्भ से द्वितीय जन्म प्राप्त करते हुए, (हरिम्) जिसके दोष हर लिये गये हैं, ऐसे (इन्दुम्) तेजस्वी (सोमम्) समावर्तन संस्कार के लिए स्नान किये हुए, विद्या पढ़े हुए ब्रह्मचारी को (पवित्रे) कुशों के आसन पर बैठाकर (देवेभ्यः) माता, पिता आदि को सौंपने के लिए (मृजन्ति) अलङ्कार धारण कराते हैं ॥समावर्तन संस्कार के समय ब्रह्मचारी के अलङ्कार-धारण के विषय में पारस्करगृह्यसूत्र २।६।२४-२६ और महर्षिदयानन्दप्रणीत संस्कारविधि ग्रन्थ देखना चाहिए। उनके अनुसार उस समय ब्रह्मचारी नये वस्त्र, उपवस्त्र, फूलमाला, आभूषण आदि धारण करता है ॥३॥

भावार्थ : व्रताचारी, विद्यालङ्कार, वेदालङ्कार, आयुर्वेदालङ्कार आदि बने हुए ब्रह्मचारी को आचार्य फूलमाला, आभूषण आदि से अलङ्कृत करके समावर्तन संस्कार करके द्विज बनाकर माता-पिता को लौटा देवे ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अथ समावर्तनसंस्कारविषय उच्यते।

पदपाठ : शिशुम् । जज्ञानम् । हरिम् । मृजन्ति । पवित्रे । सोमम् । देवेभ्यः । इन्दुम्॥

पदार्थ : (शिशुं जज्ञानम्) नवस्नातकत्वेन आचार्यगर्भाद् द्वितीयं जन्म प्राप्नुवन्तम् (हरिम्) अपहृतदोषम् (इन्दुम्) दीप्तम्, तेजस्विनम् (सोमम्) समावर्तनसंस्काराय कृताभिषेकम् अधीतविद्यं ब्रह्मचारिणम् (पवित्रे) दर्भासने उपवेश्य (देवेभ्यः) मातापित्रादिभ्यः समर्पयितुम् (मृजन्ति) अलङ्कुर्वन्ति ॥समावर्तनसंस्कारे ब्रह्मचारिणोऽलङ्करणविषये पारस्करगृह्यसूत्रं २।६।२४-२६, दयानन्दर्षिप्रणीतः संस्कारविधिग्रन्थश्च द्रष्टव्यः। तदनुसारेण तदा ब्रह्मचारी नूतनवस्त्रोपवस्त्रपुष्पस्रगलङ्कारादिकं धारयति ॥३॥

भावार्थ : व्रताचारं विद्यालङ्कारं वेदालङ्कारम् आयुर्वेदालङ्कारं ब्रह्मचारिणमाचार्यः पुष्पस्रगलङ्कारादिभिरलङ्कृत्य कृतसमावर्तनं द्विजं मात्रापित्रोः प्रत्यावर्तयेत् ॥३॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०९।१२।