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Samveda/1368

एवामृताय महे क्षयाय स शुक्रो अर्ष दिव्यः पीयूषः॥१३६८

Veda : Samveda | Mantra No : 1368

In English:

Seer : agnaye dhiShNyo aishvaraaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : dvipadaa viraaT | Tone : pa~nchamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : evaamRRitaaya mahe kShayaaya sa shukro arSha divyaH piiyuuShaH.1368

Component Words :
eva . amRRitaaya . a . mRRitaaya . mahe . kShayaaya . saH . shukraH . arSha . divyaH . piiyuuShaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अगले मन्त्र में पुनः ब्रह्मानन्द का विषय है।

पदपाठ : एव । अमृताय । अ । मृताय । महे । क्षयाय । सः । शुक्रः । अर्ष । दिव्यः । पीयूषः॥

पदार्थ : हे सोम ! हे ब्रह्मानन्द ! (सः) वह (शुक्रः) पवित्र, (दिव्यः) अलौकिक, (पीयूषः) पान करने योग्य तू (एव) सचमुच (अमृताय) हमारी अमरपद की प्राप्ति के लिए और (महे) महान् (क्षयाय) निवासक धर्म, अर्थ तथा काम की प्राप्ति के लिए (अर्ष) प्रवाहित हो ॥२॥

भावार्थ : ब्रह्मानन्द रस के पान से मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध कर सकता है ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् | स्वर : पञ्चमः

विषय : अथ पुनर्ब्रह्मानन्दविषयमाह।

पदपाठ : एव । अमृताय । अ । मृताय । महे । क्षयाय । सः । शुक्रः । अर्ष । दिव्यः । पीयूषः॥

पदार्थ : हे सोम ! हे ब्रह्मानन्द ! (सः) असौ (शुक्रः) पवित्रः, (दिव्यः) अलौकिकः (पीयूषः) पातुं योग्यः। [अत्र पीङ् पाने धातोः ‘पीयेरूषन्’ उ० ४।७७। इति ऊषन् प्रत्ययः।] त्वम् (एव) सत्यम् (अमृताय) अस्माकम् अमरपदलाभाय (महे) महते (क्षयाय) निवासकाय धर्मार्थकामलाभाय च (अर्ष) प्रस्रव ॥२॥

भावार्थ : ब्रह्मानन्दरसपानेन मनुष्यो धर्मार्थकाममोक्षान् साद्धुं क्षमते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०९।३।