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Samveda/1538

ईडेन्यो नमस्यस्तिरस्तमासि दर्शतः। समग्निरिध्यते वृषा॥१५३८

Veda : Samveda | Mantra No : 1538

In English:

Seer : vishvaamitro gaathinaH | Devta : agniH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : iiDenyo namasyastirastamaa.m si darshataH . samagniridhyate vRRiShaa.1538

Component Words :
iiDenyaH . namasyaH . tiraH . tamaasi . darshataH . sam . agniH . idhyate . vRRiShaa.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : विश्वामित्रो गाथिनः | देवता : अग्निः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम मन्त्र में परमात्माग्नि का विषय वर्णित है।

पदपाठ : ईडेन्यः । नमस्यः । तिरः । तमासि । दर्शतः । सम् । अग्निः । इध्यते । वृषा॥

पदार्थ : (ईडेन्यः) स्तुति के योग्य, (नमस्यः) नमस्कार के योग्य, (तमांसि) तमोगुणों को (तिरः) दूर करनेवाला, (दर्शतः) दर्शनीय, (वृषा) सुखों की वर्षा करनेवाला (अग्निः) जगन्नायक परमेश्वर (समिध्यते) अन्तरात्मा में प्रदीप्त होता है ॥१॥

भावार्थ : परमेश्वर को अपने आत्मा में प्रदीप्त करके उसके नेतृत्व को पाकर मनुष्यों को अपना जीवन उन्नत करना चाहिए ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : विश्वामित्रो गाथिनः | देवता : अग्निः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्रादौ परमात्माग्निविषयमाह।

पदपाठ : ईडेन्यः । नमस्यः । तिरः । तमासि । दर्शतः । सम् । अग्निः । इध्यते । वृषा॥

पदार्थ : (ईडेन्यः) ईडितुं स्तोतुमर्हः, (नमस्यः) नमस्कर्तुं योग्यः, (तमांसि) तमोगुणान् (तिरः) तिरस्कर्ता, (दर्शतः) दर्शनीयः, (वृषा) सुखवर्षकः (अग्निः) जगन्नायकः परमेश्वरः (समिध्यते) अन्तरात्मनि प्रदीप्यते ॥१॥२

भावार्थ : परमेश्वरं स्वात्मनि प्रदीप्य तन्नेतृत्वमुपलभ्य जनैः स्वजीवनमुन्नेतव्यम् ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ३।२७।१३, अथ० २०।१०२।१।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दस्वामी मन्त्रमिमं विद्वद्विषये व्याचष्टे।