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Samveda/1700

पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत। पृथिव्या अधि सानवि॥१७००

Veda : Samveda | Mantra No : 1700

In English:

Seer : nidhruviH kaashyapaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pavamaanaa divasparyantarikShaadasRRikShata . pRRithivyaa adhi saanavi.1700

Component Words :
pavamaanaaH . divaH . pari . antarikShaat . asRRikShata . pRRithivyaaH . adhi . saanavi.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : निध्रुविः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में सूर्य-किरणों के उपकार-वर्णन द्वारा भगवान् के उपकारों का वर्णन करते हैं।

पदपाठ : पवमानाः । दिवः । परि । अन्तरिक्षात् । असृक्षत । पृथिव्याः । अधि । सानवि॥

पदार्थ : परमात्मा से रची हुई (पवमानाः) पवित्र करनेवाली सूर्य-रश्मियाँ(दिवः परि) द्युलोक से और (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से(पृथिव्याः) भूमि के (सानवि अधि) उच्च प्रदेशों पर (असृक्षत) सूर्य-ताप और मेघ-जल को बरसाती हैं ॥२॥

भावार्थ : यदि सूर्य न हो तो भूमि पर प्रकाश, ताप, वर्षा, ऋतुओं आदि का निर्माण कुछ भी न हो, सब जगह घोर अँधेरा व्यापा रहे। ऐसा अद्भुत सूर्य परमात्मा ने ही रचा है, इसलिए उसी की वह महिमा है ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : निध्रुविः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ सूर्यकिरणानामुपकारवर्णनमुखेन भगवदुपकारा वर्ण्यन्ते।

पदपाठ : पवमानाः । दिवः । परि । अन्तरिक्षात् । असृक्षत । पृथिव्याः । अधि । सानवि॥

पदार्थ : परमात्मना सृष्टाः (पवमानाः) पवित्रतासम्पादकाः सूर्यरश्मयः (दिवः परि) द्युलोकात् (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकाच्च (पृथिव्याः) भूमेः (सानवि अधि) सानुप्रदेशे(असृक्षत) सूर्यतापं मेघजलं च वर्षन्ति ॥२॥

भावार्थ : यदि सूर्यो न भवेत् तर्हि भूमौ प्रकाशस्तापो वृष्टिर्ऋत्वादिनिर्माणं किमपि न भवेत्, सर्वत्र घोरं तमो व्याप्नुयात्। एतादृशोऽद्भुतः सूर्यः परमात्मनैव रचित इति तस्यैव स महिमा ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६३।२७।