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Samveda/1790

उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते। उप नो हरिभिः सुतम्॥१७९०

Veda : Samveda | Mantra No : 1790

In English:

Seer : sukakSha aa~NgirasaH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : upa no haribhiH suta.m yaahi madaanaa.m pate . upa no haribhiH sutam.1790

Component Words :
upa . naH . haribhiH . sutam . yaahi . madaanaam . pate . upa . naH . haribhiH . sutam.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : सुकक्ष आङ्गिरसः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में १५० क्रमाङ्क पर परमात्मा और आचार्य के विषय में की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा को उद्बोधन है।

पदपाठ : उप । नः । हरिभिः । सुतम् । याहि । मदानाम् । पते । उप । नः । हरिभिः । सुतम्॥

पदार्थ : हे (मदानां पते) आनन्ददायक ज्ञानों और कर्मों के स्वामी जीवात्मन् ! तू (नः) हमारी (हरिभिः) ज्ञानेन्द्रियों से (सुतम्) उत्पन्न किये ज्ञान को (उप याहि) प्राप्त कर, (नः) हमारी (हरिभिः) कर्मेन्द्रियों से (सुतम्) किये गये कर्म को (उप याहि) प्राप्त कर ॥१॥

भावार्थ : मनसहित ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय रूप साधनों से निष्पन्न किये गये ज्ञान और कर्म का सङ्ग्रह करके मनुष्य का जीवात्मा अध्यात्ममार्ग में पग रख कर उन्नति प्राप्त करे ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : सुकक्ष आङ्गिरसः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १५० क्रमाङ्के परमात्मविषयमाचार्यविषयं चोपजीव्य व्याख्याता। अत्र जीवात्मा प्रोद्बोध्यते।

पदपाठ : उप । नः । हरिभिः । सुतम् । याहि । मदानाम् । पते । उप । नः । हरिभिः । सुतम्॥

पदार्थ : हे (मदानां पते) आनन्ददायिनां ज्ञानानां कर्मणां च स्वामिन् जीवात्मन् ! त्वम् (नः) अस्माकम् (हरिभिः) ज्ञानेन्द्रियैः (सुतम्) उत्पादितं ज्ञानम् (उप याहि) उप प्राप्नुहि, (नः) अस्माकम् (हरिभिः) कर्मेन्द्रियैः (सुतम्) निष्पादितं कर्म (उप याहि) उपप्राप्नुहि ॥१॥

भावार्थ : मनःसहितैर्ज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियरूपैः साधनैर्निष्पादिते ज्ञानकर्मणी संगृह्य मनुष्यस्य जीवात्माऽध्यात्ममार्गे पदं निधायोत्कर्षं प्राप्नुयात् ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।९३।३१; साम० १५०।