Samveda/1841
उत वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा। स नो जीवातवे कृधि॥१८४१
Veda : Samveda | Mantra No : 1841
In English:
Seer : ulo vaataayanaH | Devta : vaayuH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : uta vaata pitaasi na uta bhraatota naH sakhaa . sa no jiivaatave kRRidhi.1841
Component Words : uta . vaata . pitaa . asi . naH . uta . bhraataa . uta . naH . sakhaa . sa . khaa . saH . naH . jiiShaatave . kRRidhi.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : उलो वातायनः | देवता : वायुः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में प्राण के महत्त्व का वर्णन करते हुए उससे प्रार्थना की गयी है।
पदपाठ : उत । वात । पिता । असि । नः । उत । भ्राता । उत । नः । सखा । स । खा । सः । नः । जीषातवे । कृधि॥
पदार्थ : (उत) और, हे (वात) जीवात्मा-सहित प्राण ! तू (नः) हमारा (पिता) पिता के समान पालनकर्ता (असि) है, (उत) और (नः) हमारा (भ्राता) भाई के समान भरणपोषणकर्ता, (उत) तथा (सखा) सखा के समान सहायक है। (सः) वह तू (नः) हमें (जीवातवे) स्वस्थ जीवन के लिए (कृधि) समर्थ कर ॥२॥यहाँ वात में पितृत्व, भ्रातृत्व और सखित्व के आरोप होने से रूपक अलङ्कार है ॥२॥
भावार्थ : जीवात्मा-सहित प्राण के द्वारा ही प्राणियों के जन्म, वृद्धि, क्षतिपूर्ति, आरोग्य और दीर्घायुष्य आदि होते हैं ॥२॥
In Sanskrit:
ऋषि : उलो वातायनः | देवता : वायुः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ प्राणस्य महत्त्वं वर्णयन् तं प्रार्थयते।
पदपाठ : उत । वात । पिता । असि । नः । उत । भ्राता । उत । नः । सखा । स । खा । सः । नः । जीषातवे । कृधि॥
पदार्थ : (उत) अपि च, हे (वात) जीवात्मसहचरित प्राण ! त्वम् (नः) अस्माकम् (पिता) पितृवत् पालकः (असि) विद्यसे, (उत) अपि च (नः) अस्माकम् (भ्राता) भ्रातृवद् भर्ता, (उत) अपि च (नः) अस्माकम् (सखा) मित्रवत् सहायकः वर्तसे। (सः) असौ त्वम् (नः) अस्मान् (जीवातवे) स्वस्थजीवनाय (कृधि) समर्थान् कुरु ॥२॥अत्र वाते पितृभ्रातृसखित्वारोपाद् रूपकालङ्कारः ॥२॥
भावार्थ : जीवात्मसहचरितेन प्राणेनैव प्राणिनां जन्म वृद्धिः क्षतिपूर्तिरारोग्यं दीर्घायुष्यादिकं च जायते ॥२॥
टिप्पणी: १. ऋ० १०।१८६।२।