Samveda/1058
उस्रा वेद वसूनां मर्त्तस्य देव्यवसः। तरत्स मन्दी धावति॥१०५८
Veda : Samveda | Mantra No : 1058
In English:
Seer : avatsaaraH kaashyapaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : usraa veda vasuunaa.m marttasya devyavasaH . taratsa mandii dhaavati.1058
Component Words : usraa. u. sraa. veda .vasuunaama .martasya .devii .avasaH .tarat .saH .mandii .dhaavati.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : अवत्सारः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में यह कहा गया है कि ब्रह्मानन्द-रस की धारा क्या करती है।
पदपाठ : उस्रा। उ। स्रा। वेद ।वसूनाम ।मर्तस्य ।देवी ।अवसः ।तरत् ।सः ।मन्दी ।धावति॥
पदार्थ : (देवी) सत्य, न्याय, दया आदि दिव्य गुणों से युक्त, (उस्रा) ब्रह्मानन्द-रूप सोमरस की परमेश्वररूप स्रोत से निकलती हुई धारा (मर्तस्य) मरणधर्मा मानव के (वसूनाम्) ऐश्वर्यों को (अवसः च) और रक्षा को (वेद) देना जानती है। उस धारा से (सः मन्दी) वह स्तोता (धावति) अपने अन्तरात्मा को धो लेता है और (तरत्) जन्म-मरण के बन्धन से तथा दुःखसमूह से तर जाता है ॥२॥
भावार्थ : ब्रह्मानन्द-रस की धारा से लोग आध्यात्मिक ऐश्वर्य तथा संकटों से रक्षा पाकर सांसारिक दुःख-सागर को तर जाते हैं ॥२॥
In Sanskrit:
ऋषि : अवत्सारः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ ब्रह्मानन्दरसधारा किं करोतीत्याह।
पदपाठ : उस्रा। उ। स्रा। वेद ।वसूनाम ।मर्तस्य ।देवी ।अवसः ।तरत् ।सः ।मन्दी ।धावति॥
पदार्थ : (देवी) सत्यन्यायदयादिदिव्यगुणयुक्ता (उस्रा) ब्रह्मानन्दरूपस्य सोमरसस्य उत्स्राविणी धारा (मर्तस्य) मरणधर्मणो मानवस्य (वसूनाम्) ऐश्वर्याणाम् (अवसः) रक्षणस्य च। [वसूनि अवांसि च इति प्राप्ते द्वितीयार्थे षष्ठी।] (वेद) दातुं जानाति। तया धारया (सः मन्दी) असौ स्तोता (धावति) स्वान्तरात्मानं शोधयति, (तरत्) तरति च जन्ममरणबन्धनं दुःखसमूहं च ॥२॥
भावार्थ : ब्रह्मानन्दरसधारया जना आध्यात्मिकमैश्वर्यं संकटेभ्यो रक्षां च प्राप्य सांसारिकं दुःखार्णवं तरन्ति ॥२॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।५८।२।