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Samveda/1178

एते सोमा अभि प्रियमिन्द्रस्य काममक्षरन्। वर्धन्तो अस्य वीकयम्॥११७८

Veda : Samveda | Mantra No : 1178

In English:

Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : ete somaa abhi priyamindrasya kaamamakSharan . vardhanto asya viiryam.1178

Component Words :
ete .somaaH. abhi. priyam .indrasya. kaamam .akSharan .vardhantaH .asya .viiryam .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अब ब्रह्मानन्द-रसों का वर्णन करते हैं।

पदपाठ : एते ।सोमाः। अभि। प्रियम् ।इन्द्रस्य। कामम् ।अक्षरन् ।वर्धन्तः ।अस्य ।वीर्यम् ॥

पदार्थ : (एते) ये (सोमाः) ब्रह्मानन्दरस (अस्य) इस (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (वीर्यम्) बल को (वर्धन्तः) बढ़ाते हुए (प्रियम्) प्रिय (कामम्) अभ्युदय एवं निःश्रेयस की प्राप्ति रूप मनोरथ को (अभि अक्षरन्) पूर्ण करते हैं ॥१॥

भावार्थ : मनुष्यों को योग्य है कि वे उपासना से ब्रह्मानन्द पाकर अभ्युदय एवं निःश्रेयस की सिद्धि प्राप्त करें ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ ब्रह्मानन्दरसान् वर्णयति।

पदपाठ : एते ।सोमाः। अभि। प्रियम् ।इन्द्रस्य। कामम् ।अक्षरन् ।वर्धन्तः ।अस्य ।वीर्यम् ॥

पदार्थ : (एते) इमे (सोमाः) ब्रह्मानन्दरसाः (अस्य) एतस्य (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (वीर्यम्) बलम् (वर्धन्तः) वर्धयन्तः (प्रियम्) प्रीतिकरम् (कामम्) अभ्युदयनिःश्रेयसप्राप्तिरूपम् अभिलाषम् (अभि अक्षरन्) प्रपूरयन्ति ॥१॥

भावार्थ : परब्रह्मोपासनया ब्रह्मानन्दं प्राप्य जना आभ्युदयिकीं नैःश्रेयसीं च सिद्धिं प्राप्तुमर्हन्ति ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।८।१।