मा त्वा॑ तपत् प्रि॒यऽआ॒त्मापि॒यन्तं॒ मा स्वधि॑तिस्त॒न्व᳕ऽआ ति॑ष्ठिपत्ते।मा ते॑ गृ॒ध्नुर॑विश॒स्ताति॒हाय॑ छि॒द्रा गात्रा॑ण्य॒सिना॒ मिथू॑ कः॥४३॥
Yajurveda/25/43
मा त्वा॑ तपत्प्रि॒य आ॒त्मापि॒यन्तं॒ मा स्वधि॑तिस्त॒न्व१॒॑ आ ति॑ष्ठिपत्ते। मा ते॑ गृ॒ध्नुर॑विश॒स्ताति॒हाय॑ छि॒द्रा गात्रा॑ण्य॒सिना॒ मिथू॑ कः ॥
Rigveda/1/162/20
मा त्वा॑ दभन्परि॒यान्त॑मा॒जिं स्व॒स्ति दु॒र्गाँ अति॑ याहि॒ शीभ॑म्। दिवं॑ च सूर्य पृथि॒वीं च॑ दे॒वीम॑होरा॒त्रे वि॒मिमा॑नो॒ यदेषि॑ ॥ 5॥
Atharvaveda/13/2/5
मा त्वा॑ मू॒रा अ॑वि॒ष्यवो॒ मोप॒हस्वा॑न॒ आ द॑भन् । माकीं॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ वनः ॥
Rigveda/8/45/23
मा त्वा॑ मू॒रा अ॑वि॒ष्यवो॒ मोप॒हस्वा॑न॒ आ द॑भन्। माकीं॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ वनः ॥ 2॥
Atharvaveda/20/22/2
मा त्वा॑ रुद्र चुक्रुधामा॒ नमो॑भि॒र्मा दुष्टु॑ती वृषभ॒ मा सहू॑ती। उन्नो॑ वी॒राँ अ॑र्पय भेष॒जेभि॑र्भि॒षक्त॑मं त्वा भि॒षजां॑ शृणोमि॥
Rigveda/2/33/4
मा त्वा॑ वृ॒क्षःसं बा॑धिष्ट॒ मा दे॒वी पृ॑थि॒वी म॒ही। लो॒कं पि॒तृषु॑ वि॒त्त्वैध॑स्व य॒मरा॑जसु॥25॥
Atharvaveda/18/2/25
मा त्वा॑ श्ये॒न उद्व॑धी॒न्मा सु॑प॒र्णो मा त्वा॑ विद॒दिषु॑मान्वी॒रो अस्ता॑। पित्र्या॒मनु॑ प्र॒दिशं॒ कनि॑क्रदत्सुम॒ङ्गलो॑ भद्रवा॒दी व॑दे॒ह॥
Rigveda/2/42/2
मा त्वा॑दभन्त्सलि॒ले अ॒प्स्व१॒॑न्तर्ये पा॒शिन॑ उप॒तिष्ठ॒न्त्यत्र॑। हि॒त्वाश॑स्तिं॒दिव॒मारु॑क्ष ए॒तां स नो॑ मृड सुम॒तौ ते॑ स्याम॒ तवेद्वि॑ष्णो बहु॒धा वी॒र्या᳡णि। त्वं नः॑ पृणीहि प॒शुभि॑र्वि॒श्वरू॑पैः सु॒धायां॑ मा धेहि पर॒मे व्यो᳡मन् ॥8॥
Atharvaveda/17/1/8
मा नः॑ प॒श्चान्मा पु॒रस्ता॑न्नुदिष्ठा॒ मोत्त॒राद॑ध॒रादु॒त। स्व॒स्ति भू॑मे नो भव॒ मा वि॑दन्परिप॒न्थिनो॒ वरी॑यो यावया व॒धम् ॥ 32॥
Atharvaveda/12/1/32
मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरन्त । आ न॑ इन्दो॒ वाजे॑ भज ॥
Rigveda/1/43/8
मा नः॑ स्ते॒नेभ्यो॒ ये अ॒भि द्रु॒हस्प॒दे नि॑रा॒मिणो॑ रि॒पवोऽन्ने॑षु जागृ॒धुः। आ दे॒वाना॒मोह॑ते॒ वि व्रयो॑ हृ॒दि बृह॑स्पते॒ न प॒रः साम्नो॑ विदुः॥
Rigveda/2/23/16
मा नो॑ मे॒धां मा नो॑ दी॒क्षां मा नो॑ हिंसिष्टं॒ यत्तपः॑। शि॒वा नः॒ शं स॒न्त्वायु॑षे शि॒वा भ॑वन्तु मा॒तरः॑ ॥ 3॥
Atharvaveda/19/40/3
मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ अर्भ॒कं मा नो॒ वह॑न्तमु॒त मा नो॑ वक्ष्य॒तः। मा नो॑ हिंसीः पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च॒ स्वां त॒न्वं᳡ रुद्र॒ मा री॑रिषो नः ॥ 29॥
Atharvaveda/11/2/29
मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ अर्भ॒कं मा न॒ उक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ उक्षि॒तम्। मा नो॑ बधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा न॑: प्रि॒यास्त॒न्वो॑ रुद्र रीरिषः ॥
Rigveda/1/114/7
मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो᳖ रुद्र रीरिषः॥१५॥
Yajurveda/16/15
मा नो॑ रुद्र त॒क्मना॒ मा वि॒षेण॒ मा नः॒ सं स्रा॑ दि॒व्येना॒ग्निना॑। अ॒न्यत्रा॒स्मद्वि॒द्युतं॑ पातयै॒ताम् ॥ 26॥
Atharvaveda/11/2/26
मा नो॑ वधी रुद्र॒ मा परा॑ दा॒ मा ते॑ भूम॒ प्रसि॑तौ हीळि॒तस्य॑। आ नो॑ भज ब॒र्हिषि॑ जीवशं॒से यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥४॥
Rigveda/7/46/4
मा नो॑ वधीरिन्द्र॒ मा परा॑ दा॒ मा न॑: प्रि॒या भोज॑नानि॒ प्र मो॑षीः। आ॒ण्डा मा नो॑ मघवञ्छक्र॒ निर्भे॒न्मा न॒: पात्रा॑ भेत्स॒हजा॑नुषाणि ॥
Rigveda/1/104/8
मा न॑: सोम॒ सं वी॑विजो॒ मा वि बी॑भिषथा राजन् । मा नो॒ हार्दि॑ त्वि॒षा व॑धीः ॥
Rigveda/8/79/8
मा न॑स्तो॒के तन॑ये॒ मा न॑ आ॒यौ मा नो॒ गोषु॒ मा नो॒ अश्वे॑षु रीरिषः। वी॒रान्मा नो॑ रुद्र भामि॒तो व॑धीर्ह॒विष्म॑न्त॒: सद॒मित्त्वा॑ हवामहे ॥
Rigveda/1/114/8
मा न॑स्तो॒के तन॑ये॒ मा न॒ऽआयु॑षि॒ मा नो॒ गोषु॒ मा नो॒ऽअश्वे॑षु रीरिषः। मा नो॑ वी॒रान् रु॑द्र भा॒मिनो॑ वधीर्ह॒विष्म॑न्तः॒ सद॒मित् त्वा॑ हवामहे॥१६॥
Yajurveda/16/16
मा न॒ एक॑स्मि॒न्नाग॑सि॒ मा द्वयो॑रु॒त त्रि॒षु । वधी॒र्मा शू॑र॒ भूरि॑षु ॥
Rigveda/8/45/34
मि॒त्रश्च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ वरु॑णश्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे धा॒ता च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ त्वष्टा॑ च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे म॒रुत॑श्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे विश्वे॑ च मे दे॒वाऽइन्द्र॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१७॥
Yajurveda/18/17