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Atharvaveda / 1 / 15 / 4

ये स॒र्पिषः॑ सं॒स्रव॑न्ति क्षी॒रस्य॑ चोद॒कस्य॑ च। तेभि॑र्मे॒ सर्वैः॑ संस्रा॒वैर्धनं॒ सं स्रा॑वयामसि ॥ 4॥

Veda : Atharvaveda | Kand : 1 | Sukta : 15 | Paryay : | Mantra No : 4

In English:

Seer : atharvaa | Devta : sindhusamuuhaH | Metre : anuShTup | Tone :

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : ye sarpiShaH sa.msravanti kShiirasya chodakasya cha. tebhirme sarvaiH sa.msraavairdhana.m sa.m sraavayaamasi . 4.

Component Words : ye . sarpiShaH . sam.asravanti . kShiirasya . cha . udakasya . cha . terbhiH . me . sarvaiH . sam.asraavaiH . dhanam . sam . sraavayaamasi .

Word Meaning :

Verse Meaning :

Purport :


In Hindi:

ऋषि : अथर्वा | देवता : सिन्धुसमूहः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर :

विषय : ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदपाठ : ये । स॒र्पिष॑: । स॒म्ऽस्रव॑न्ति । क्षी॒रस्य॑ । च॒ । उ॒द॒कस्य॑ । च॒ । तेर्भि॑: । मे॒ । सर्वै॑: । स॒म्ऽस्रा॒वै: । धन॑म् । सम् । स्रा॒व॒या॒म॒सि॒ ॥

पदार्थ : (सर्पिषः) घृत की (च) और (क्षीरस्य) दूध की (च) और (उदकस्य) जल की (ये) जो धाराएँ (संस्रवन्ति) मिलकर बह चलती हैं। (तैः सर्वैः) उन सब (संस्रावैः) धाराओं के साथ (मे) अपने (धनम्) धनको (सम्) उत्तम रीति से (स्रावयामसि) हम व्यय करें ॥४॥"

भावार्थ : जैसे घी, दूध और जल की बूँद-बूँद मिलकर धारें बँध जाती और उपकारी होती हैं, इसी प्रकार हम लोग उद्योग करके थोड़ा-थोड़ा संचय करने से बहुत सा विद्या, धन और सुवर्ण आदि धन प्राप्त करके उत्तम कामों में व्यय करें ॥४॥

टिप्पणी :४−ये। संस्रावाः प्रवाहाः। सर्पिषः। अर्चिशुचिहुसृपि०। उ० २।१०८। इति सृप गतौ=सर्पणे-इसि। सर्पणशीलस्य द्रवणस्वभावस्य घृतस्य। क्षीरस्य-घसेः किच्च। उ० ४।३४। इति घस=अद भक्षणे−ईरन्, उपधालोपे कत्वं षत्वं च। दुग्धस्य। उदकस्य−उदकं च। उ० २।३९। इति उन्दी क्लेदने−क्वुन्, युवोरनाकौ। पा० ७।१।१। इति अकादेशः। जलस्य। अन्यद् व्याख्यातं म० ॥४॥