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Atharvaveda / 1 / 16 / 2

सीसा॒याध्या॑ह॒ वरु॑णः॒ सीसा॑या॒ग्निरुपा॑वति। सीसं॑ म॒ इन्द्रः॒ प्राय॑च्छ॒त्तद॒ङ्ग या॑तु॒चात॑नम् ॥ 2॥

Veda : Atharvaveda | Kand : 1 | Sukta : 16 | Paryay : | Mantra No : 2

In English:

Seer : chaatanaH | Devta : indraH | Metre : anuShTup | Tone :

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : siisaayaadhyaaha varuNaH siisaayaagnirupaavati. siisa.m ma indraH praayachChattada~Nga yaatuchaatanam . 2.

Component Words : siisaaya . adhi . aaha . varuNaH . siisaaya . agniH . upa . avati . siisam . me . indraH . pra . ayachChat . tat . a~Nga . yaatu.achaatanam .

Word Meaning :

Verse Meaning :

Purport :


In Hindi:

ऋषि : चातनः | देवता : इन्द्रः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर :

विषय : विघ्न के नाश का उपदेश।

पदपाठ : सीसा॑य । अधि॑ । आ॒ह॒ । वरु॑ण: । सीसा॑य । अ॒ग्नि: । उप॑ । अ॒व॒ति॒ । सीस॑म् । मे॒ । इन्द्र॑: । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । तत् । अ॒ङ्ग । या॒तु॒ऽचात॑नम् ॥

पदार्थ : (वरुणः) चाहने योग्य, समुद्रादि का जल (सीसाय) बन्धन काटनेवाले सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति] के लिये (अधि) अधिकारपूर्वक (आह) कहता है, (अग्निः) व्यापक, सूर्य, बिजुली आदि अग्नि (सीसाय) बन्धन काटनेवाले सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान] के लिये (उप) समीप रह कर (अवति) रक्षा करता है। (इन्द्रः) महाप्रतापी परमेश्वर ने (सीसम्) बन्धन काटनेवाला सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान] (मे) मुझको (प्र-अयच्छत्) दिया है, (अङ्ग) हे भाई (तत्) वह सामर्थ्य (यातुचातनम्) पीडानाशक है ॥२॥"

भावार्थ : जल, अग्नि, वायु आदि पदार्थ ईश्वर की आज्ञा से परस्पर मिलकर हमारे लिये बाहिर और भीतर से उपकारी होते हैं। वह ब्रह्मज्ञान प्रत्येक मनुष्य आदि प्राणी को परमेश्वर ने दिया है, उस ज्ञान को साक्षात् करके प्राणी दुःखों से छूट कर शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक आनन्द पाते हैं ॥२॥

टिप्पणी :टिप्पणी−(सीस) शब्द का धात्वर्थ [षिञ् बाँधना−क्विप्+षो नाश करना−क प्रत्यय] बन्धन का काटनेवाला है। लोक में वस्तुविशेष, सीसा को कहते हैं। सायणभाष्य में (सीस) का अर्थ “नदी के फेन आदि रूप द्रव्य” और ग्रिफ़िथ साहिब ने (lead) सीसा धातुविशेष किया है ॥ २−सीसाय। षिञ् बन्धने−क्विप्+षो नाशने-क। पृषोदरादित्वात् तुक् लोपे दीर्घः। सीं सितं बन्धं प्रतिबन्धं स्यति नाशयतीति सीसम्। प्रतिबन्धस्य विघ्नस्य नाशकसामर्थ्याय। ब्रह्मज्ञानप्राप्तये। अधि। अधिकारेण। आह। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि-लट्। ब्रवीति। वरुणः। १।३।३। वरणीयं समुद्रादिजलम्। अग्निः। १।६।२। व्यापकः। सूर्यविद्युदादिरूपोऽग्निः। उप। उपेत्य। अवति। रक्षति। व्याप्नोति। इन्द्रः। १।२।३। महाप्रतापी परमेश्वरः। प्र-अयच्छत्। पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः−लङ्। प्रादात्। तत्। निर्दिष्टं सीसम्। अङ्ग। सम्बोधने। हे सखे। यातु-चातनम्। कृवापाजिमि०। उ० १।१। यत ताडने-उण्। चातयति नाशने−निरु० ६।३०। पीडानाशकम्। राक्षसनाशकम् ॥