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Samaadhi Paada / Trance / 6
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Samaadhi Paada / Trance / 6

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः॥६॥

Padas Name : Samaadhi Paada / Trance | Sutra No : 6

In English:
Preface to Sutra in English : taaH kliShTaashchaakliShTaashcha pa~nchadhaa vRRittayaH —

Meaning in English : (taaH) These (kliShTaaH cha akliShTaaH cha) afflictive and non-afflictive (vrittayaH) mental modifications / activities are (pa~nchadhaa) of five descriptions —

Sutra in English : pramaaNaviparyayavikalpanidraasmRRitayaH.6.

Meaning in English :

(pramaaNa) Real cognition [true knowledge], (viparyaya) unreal cognition [false knowledge], (vikalpa) imagination, (nidraa) sleep and (smritayaH) memory are the five types of modifications.



Swami Dyanand Saraswati Gloss :

Those five modifications are — (1) The Real cognition, (2) the Unreal cognition, (3) the imagination, (4) the sleep, and (5) the memory.             (Rigvedaadi-bhaashyabhuumikaa - On Worship)



Vyaasa Commentary in English :

Meaning In English :

Vedic Commentary in English :

Seer Patanjali had explained the five modifications in the coming aphorisms. Here this is to be understood that all the modifications are classified in five categories i.e. real cognition, unreal cognition, imagination, sleep and memory. All the modifications of mind are covered in these categories. So for the restrain of modifications, their categorisation is to be known.

            The other way of classification of modifications is explained in the last aphorism, which is in terms of afflictive and non-afflictive. So either the modification will be afflictive or non-afflictive. Naming of the modifications is done in this aphorism. Afflictive and non-afflictive classification is to understand the causes of bondage and salvation and modification-residual potencies-modification cycle. With the afflictive modification-residual potencies-modification cycle person is involved in the experience of worldly objects and remains bonded in the life-cycle. On the other hand with non-afflictive modification-residual potencies-modification cycle person is able to achieve the discriminative knowledge and thereby oppose the authority and functioning of Qualities of Illumination, Activity and Inertia, and with the restrain of all the modifications Soul gets established in his conscious form and is able to achieve salvation.



Comment in English :


In Hindi:

संस्कृत में सूत्र की भूमिका : ताः क्लिष्टाश्चाक्लिष्टाश्च पञ्चधा वृत्तयः —

हिंदी में अर्थ : (ताः) वे (क्लिष्टाश्चाक्लिष्टाः च) क्लिष्ट और अक्लिष्ट भेद वाली (वृत्तयः) वृत्तियाँ (पञ्चधा) पाँच प्रकार की होती हैं —

हिंदी में अर्थ :

वे पाँच वृत्तियाँ ये हैं — (पहली) प्रमाण;  (दूसरी) विपर्यय;  (तीसरी) विकल्प;  (चौथी) निद्रा और (पाँचवी) स्मृति॥



महर्षि दयानन्द कृत अर्थ :

वे पाँच वृत्तियाँ ये हैं — (पहली) प्रमाण;  (दूसरी) विपर्यय;  (तीसरी) विकल्प;  (चौथी) निद्रा और (पाँचवी) स्मृति॥ (ऋ० भू॰ उपासना विषय)



व्यास भाष्य :

हिंदी में अर्थ :

वैदिक योग मीमांसा :

इन वृत्तियों की व्याख्या सूत्रकार महर्षि पतञ्जलि ने आगे के पाँच सूत्रों में स्वयं की है। यहाँ पर इतना ही समझना है कि महर्षि पतञ्जलि ने चित्त की सभी वृत्तियों को पाँच प्रकार से बाँटा है जो कि प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति के रूप में हैं। चित्त की समस्त वृत्तियाँ इन्हीं पाँच में ही समा जाती हैं। अतः वृत्ति निरोध के लिए इन पाँचों प्रकार की वृत्तियों के स्वरूप और लक्षणों को समझना आवश्यक है। तभी इन वृत्तियों का निरोध सम्भव हो पायेगा।

          इन्हीं वृत्तियों को दूसरे प्रकार से पिछले सूत्र में दिखाया गया है जो कि क्लिष्ट और अक्लिष्ट रूप से हैं अर्थात् या तो कोई वृत्ति क्लेश सहित होगी;  या क्लेश रहित होगी। परन्तु नामकरण की दृष्टि से सूत्रकार महर्षि पतञ्जलि ने इन वृत्तियों के पाँच नाम इस सूत्र द्वारा दिए हैं। क्लिष्ट और अक्लिष्ट, वृत्तियों का नामकरण नहीं है;  परन्तु वृत्ति-संस्कार-वृत्ति चक्र को समझाने तथा बन्धन और अपवर्ग के कारणों को बताने के दृष्टिकोण से यह विभाग किया गया है। अर्थात् क्लिष्ट वृत्ति-संस्कार-वृत्ति चक्र से कर्म संस्कारों और वासनाओं को प्रबलता = सुदृढता मिलती, जिससे पुरुष को भोग और बन्धन की प्राप्ति होती है। दूसरी ओर अक्लिष्ट वृत्ति-संस्कार-वृत्ति चक्र से पुरुष को विवेकख्याति की प्राप्ति और सत्त्व, रज, तम गुणों के कार्यों का विरोध = निरोध होने से पुरुष के लिए अपवर्ग का कारण = आधार बनता है॥



हिंदी में टिप्पणी :